गोली नहीं पूर्वांचल में बाबू शंकर सिंह की बोली थी मशहूर
0गाजीपुर समेत पूरे पूर्वांचल में शराब का था बड़ा साम्राज्य
0गरीबों के थे मसीहा, वहीं सियासतदानों की करते थे मदद
0कारोबार में कभी नहीं उठाए हथियार, लोग देते थे सम्मान
014 को सैदपुर के कौशिक भवन में मनेगी प्रथम पुण्यतिथि
अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। शराब से जुड़े कारोबार में एक जमाना था, जब गोलियां तड़तड़ाती थी। गैंगवार होता था। पूर्वांचल में गाजीपुर का सैदपुर कभी गैंगवार का बड़ा ठिकाना था, मगर सैदपुर के शराब कारोबारी रहे शंकर सिंह ने अपने जीवन काल में खुद कभी हथियार नहीं उठाया। उनकी बोली ही पूरे पूर्वांचल में मशहूर थी। जहां चाहते थे, वहां का शराब कारोबार शंकर सिंह के हाथ में होता था।
वह जहां गरीबों के देवता कहलाते थे तो वहीं सियासतदानों के रहनुमा थे। उनके दर पर पूर्वांचल की तमाम सियासी हस्तियां चुनाव लड़ने के लिए सहयोग और आर्शीवाद लेने आती थी। 14 अक्तूबर को उनकी प्रथम पुण्यतिथि कौशिक भवन सैदपुर में आयोजित की गई है। उनके सबसे छोटे पुत्र एवं जिला पंचायत अध्यक्ष पति पंकज सिंह चंचल कहते हैं कि मेरे पिता ने पूरे जीवन भर लोगों की मदद की। आज उनकी कमी हम लोगों को खल रही हैै। उनके बताए रास्ते पर चलकर जीवन के सपनों को सच करूंगा। उनकी पुण्यतिथि पर सोमवार को हजारों लोगों का जुटान कौशिक सदन में होगा। जहां पर गरीबों को दान भी किया जाएगा।
यूपी के गाजीपुर जनपद के सैदपुर ब्लाक के अहिरौली गांव निवासी द्वारिका सिंह को 30 दिसंबर 1940 को जब पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उनके घर का कोई सदस्य नहीं जानता था कि यह नन्हा सा बालक आगे चलकर गांव ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में कुल का नाम रोशन करेगा। जानते हैं कि वह कौन था। हम बात कर रहे हैं शिवशंकर सिंह की। शंकर सिंह का जीवन बचपन से ही अभावों में गुजारा। क्योंकि उनके पिता एक मामूली किसान थे। देश में आजादी की लड़ाई की गूंज सुनाई दे रही थी।
उनके जन्म से सात वर्ष बाद सन् 1947 में देश आजाद हुआ। इस नन्हें शिवशंकर के भीतर देश भक्ति की भावना जागने लगी। अंग्रेजों के प्रति नफरत का भाव रखने वाले शिवशंकर सिंह परिवार की माली हालत को देखते हुए 18 वर्ष की उम्र में ही व्यापार से जुड़ गए। वह रेलवे स्टेशन से लेकर सैदपुर बाजार में झोले में रखकर कुछ सामान बेचते थे। उनके दो और भाई थे। वह बीच के यानि मझले थे। जबकि सबसे बड़े भाई श्री नारायण सिंह और सबसे छोटे भाई रामाशंकर सिंह काटू सिंह थे।
शुरूआती दौर में शंकर सिंह को बिजनेस में कोई खास सफलता नहीं मिली। चूंकि उस समय देश आजाद हो चुका था। देश विकास की नई कहानी लिखने के लिए बेताब था। अचानक 70 के दशक में शंकर सिंह का भाग्य उदय हुआ और उन्होंने कुछ लोगों के सहयोग से शराब के व्यवसाय में हाथ आजमाया। इसके बाद कभी भी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने जीवन काल में अरबों की संपत्ति बनाई। कम पढ़े लिखे होने के बावजूद शंकर सिंह में मानवता कूट कूटकर भरी थी। बीस वर्षों तक अपने गांव अहिरौली गांव के निर्विरोध प्रधान रहने के बावजूद अपने भाइयों को जान से भी ज्यादा चाहने वाले शंकर सिंह ने अपने चाचा बलिराम सिंह के बेटे कैलाश सिंह को अपने बूते दो बार एमएलसी बनवाए।
सब कुछ अपना खर्च किया। यही नहीं अपने समधी राजदेव को भी एमएलसी बनवाने में शंकर सिंह की भूमिका को कम करके आका नहीं जा सकता। पूरे इलाके में उनका काफी प्रभाव रहा। उन्होंने अपने बेटे हरिकेश सिंह बब्लू की पत्नी एवं अपने सगे भाई काटू सिंह को ब्लाक प्रमुख भी बनवाने से नहीं चूके। यहां तक की जब 2016 में पहली बार उनके दामाद एवं मौजूदा युवा एमएलसी विशाल सिंह चंचल चुनाव लड़ रहे थे तब श्री सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर सदन में भेजने का काम किया।
तीन जवान बेटों की मौत से टूट चुके थे शंकर सिंह
मगर नियती को कुछ और ही मंजूर था। उनके छह बेटे अवधेश सिंह, राजेश सिंह, हरिकेश सिंह, राकेश सिंह, मुकेश सिंह पंकज सिंह चंचल हैं। मगर 6 बेटों में तीन बेटे अवधेश सिंह, राजेश सिंह, हरिकेश सिंह बब्लू की अर्थी कुछ वर्षों के अंतराल में उठने लगी तो शंकर सिंह का मन मोहमाया से उचट गया। वह दुखी रहने लगे। पूरी तरह से टूट गए। फिर भी वह अपनों को कभी नहीं भूले। उनके डाक्टर बेटे मुकेश सिंह एवं जिला पंचायत अध्यक्ष सपना सिंह के पति पंकज सिंह उनको बचाने की पूरजोर कोशिश किए। हिन्दुस्तान के टाप टेन अस्पतालों में ले गए। मगर एक मनहूस तारीख 14 अक्तूबर 2023 को आ ही गई। जब हमेशा हमेशा के लिए बाबू शिवशंकर चिर निद्रा में सो गए। उनकी दिली ख्वाहिश थी कि पंकज सिंह जो कभी जिला पंचायत सदस्य थे, उन्हें सियासत में एक बड़ा मुकाम मिले। उनके जीते जी उनकी बहू सपना सिंह जिले की प्रथम महिला जिला पंचायत अध्यक्ष तक पहुंच गई।
पंकज के नहीं थम रहे आंसु
पंकज का सपना है कि सपना प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचकर कौशिक कुल का नाम रोशन करें। पिता को याद करते हुए डाक्टर बेटे मुकेश सिंह के भी आंसू नहीं थमते। वह कहते हैं कि मेरे पिता जैसा पिता युगों युगों तक इस धरा पर नहीं आएगा। उनके छोटे बेटे एवं पिता की सेवा में हमेशा तत्पर रहे पंकज सिंह से जब पिता के विषय में पूछा जाता है तो वह कुछ बोल नहीं पाते। बस उनके आंखों के आंसुओं से ही पिता से बिछुड़ने का दर्द छलकता है। वह बस इतना ही कह पाए कि पिता के बताए रास्ते पर चलकर कुल का नाम रोशन करता रहूंगा।