अभिनव सिन्हा के सियासी प्लान से भाजपाइयों को झटका
0आखिर अभिनव सिन्हा कहां से लड़ेंगे विधानसभा चुनाव
02024 में अभिनव की जगह पारसनाथ बन गए थे प्रत्याशी
0लोकसभा चुनाव की तीन वर्ष से अभिनव ने की थी तैयारी
0अब मुहम्मदाबाद एवं सदर में किसी एक से मिलेगा टिकट
अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। तीन बार गाजीपुर लोकसभा के सांसद रहे मनोज सिन्हा के बेटे अभिनव सिन्हा के सियासी भविष्य को लेकर कयासबाजी तेज हो गई है। यह चर्चा तब और तेज हो गई है, जब जम्मू एवं कश्मीर में भाजपा हार चुकी है। अब एलजी मनोज सिन्हा की भूमिका बदलेगी और उन्हें दिल्ली बुलाया जाएगा।
ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें राज्यसभा के रास्ते केंद्र की मोदी सरकार में शामिल करके रेल जैसे बड़े महकमे का प्रभार सौंपा जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में अभिनव का सियासी भाग्य क्या होगा। वह 2027 का विधानसभा लड़ेंगे। सदर से उन्हें टिकट मिलेगा या फिर भूमिहार बाहुल्य मुहम्मदाबाद भेजा जाएगा। इनत तमाम चर्चाओं के बीच अभिनव अपने सियासी भविष्य को लेकर खासे फिक्रमंद दिखाई दे रहे हैं। उनकी चिंता देखते बनती है।
2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक तीन वर्ष पहले अभिनव को मनोज सिन्हा ने लांच करके गाजीपुर भेजा था। जब वह गाजीपुर आए तो उन्होंने पांचों विधानसभा सदर, जमानियां, जखनियां, सैदपुर और जंगीपुर में अपने सियासी दौरे तेज कर दिए थे। उनके साथ भारी भरकम सरकारी लाव लश्कर था। उनका रोज कार्यक्रम लगता था। भाजपा भी उन्हें लांच कर रही थी। हर कार्यक्रम में दिखाई देते थे। प्रदेश एवं केंद्र के जो भी नेता आते थे, उसमें अभिनव सिन्हा मंच पर अवश्य दिखते थे। हर जगह सिर्फ अभिनव की ही चर्चा हो रही थी।
कोई उन्हें बछड़ुआ कहता था तो कोई संस्कृत का प्रकांड विद्यवान बता रहा था। क्योंकि अभिनव पूजा पाठ करने वाले ब्राम्हाणों से बेहतर संस्कृत में देवी मंत्रों को कंठस्थ याद कर लिए थे। वह पिता द्वारा कराए गए विकास कार्यों को ही आत्मसात करते रहे। उसका गुणगान करते थे। केंद्र की मोदी एवं यूपी की योगी सरकार की तारीफ करते नहीं थकते थे। ऐसा लग रहा था कि अगला चुनाव अभिनव ही लड़ेंगे। चुनाव के ठीक छह माह पहले यह भी चर्चा तेज हो गई कि मनोज सिन्हा पुनः गाजीपुर आ रहे हैं। उन्हें भाजपा टिकट दे रही है।
जब पारस नाथ राय को टिकट मिला तो सियासी पंडितों की भविष्यवाणी धरी की धरी रह गई। तब पारसनाथ राय पर ही बहस शुरू हो गई। मगर पारसनाथ राय के टिकट मिलने से कई दिनों तक अभिनव चिंतन में डूब गए। उनके मन में बार बार सवाल उठने लगा कि आखिर मेरे पिता सियासत में इतने मजबूत होने के बाद भी मुझे टिकट नहीं दिला पाए। उस समय भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह निर्णय लिया कि सपा के अफजाल अंसारी के सामने अभिनव नहीं टिकेंगे। इसलिए पारसनाथ राय जैसे ही चेहरे को मैदान में उतारा जाए। पारसनाथ राय ने सिर्फ चुनाव के दौरान मेहनत की और चार लाख का आकड़ा पार कर गए। हालांकि चुनाव के कुछ दिनों बाद अभिनव ने पारसनाथ राय के लिए भी खूब मेहनत की। परिणाम सबके सामने है।
अभिनव को लेकर मनोज सिन्हा को कोई बड़ा फैसला लेना चाहिए। वरना भाजपा के केंद्र में कमजोर होने के बाद अभिनव को सियासत में स्थापित होने में संघर्ष उसी तरह से करना पड़ेगा जिस तरह से मनोज सिन्हा को सियासत में स्थापित होने के लिए करना पड़ा।
तब पीयूष के सपने का क्या होगा!
अब सवाल उठता है कि आखिर अभिनव सिन्हा क्या करेंगे। उन्हें मुहम्मदाबाद भेजा जाएगा। ऐसी परिस्थितियों में अलका राय के परिवार का क्या होगा। क्योंकि करईल की सियासत में अभी भी स्व. कृष्णानंद राय का नाम जिंदा है। जब भी चुनाव होते हैं उनके नाम पर सियासत का पैमाना बदलने लगता है। अगर अभिनव को भाजपा मुहम्मदाबाद से उतारती है तो अलका राय के पुत्र पीयूष राय सपोर्ट करेंगे। या फिर जो अन्य लोग करते हैं वही होगा।
अभिनव के लिए आसानी से मान जाएंगे आनंद
भांवरकोल ब्लाक प्रमुख पति एवं कृष्णानंद राय के भतीजे भी सियासत में काफी मजबूत हो गए हैं। सिर्फ वह भांवरकोल ब्लाक तक ही सीमित नहीं है बल्कि उनकी सियासत पूरे मुहम्मदाबाद तक फैल चुकी है। पूरे विधानसभा में एक तरह से वह 2027 की तैयारी कर रहे हैं। उनके समर्थक उनको अगला भाजपा का प्रत्याशी मानकर चल रहे हैं। ऐसे हालात में अभिनव के लिए आनंद राय आसानी से मान जाएंगे। क्योंकि वह मनोज सिन्हा को अपना सियासी अभिभावक मानते रहे हैं।
सदर में आए तो विजय मिश्रा को होगी मुश्किल
अगर अभिनव सदर से लड़ेंगे तो पूर्व मंत्री विजय मिश्रा का क्या होगा। क्योंकि जबसे विजय मिश्रा भाजपा में शामिल हुए हैं उनको भाजपा ने कोई जिम्मेदारी अभी तक नहीं दी है। सियासत के जानकारों का मानना है कि अभिनव को चुनाव 2027 का लड़ना चाहिए। इससे उन्हें सियासत का अनुभव भी मिलेगा और जनता में उनके प्रति क्या रूझान है यह भी समझ में आएगा। सदर से अभिनव ने चुनाव लड़ा तो कई भाजपा नेताओं के सपने चकनाचूर हो जाएंगे।