education card मैं हूं सियासत का जादूगर...
0लगातार दूसरी बार जीतकर अफजाल ने बनाया रिकार्ड
0बुल्डोजर की गर्जना और कई मुकदमें भी नहीं डिगा सके
01985 से लेकर अब तक तीन बार ही हार चुके हैं चुनाव
0बीते सात वर्षों से योगी सरकार के निशाने पर हैं अफजाल
0प्रधानमंत्री, तीन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री ने किया था प्रचार
अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। मैं हूं सियासत का जादूगर मुझे बुल्डोजर की गर्जना और दर्जनों मुकदमा भी डिगा नहीं सके। बार बार पुलिस की छापेमारी ने मुझे झुका नहीं पाई। प्रधानमंत्री से लेकर तीन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री तक भी मुझे हरा नहीं पाए।
बीते सात वर्षों से योगी सरकार के निशाने पर रहने के बावजूद मेरी आवाज बंद नहीं करा सके। जीं हां कुछ ऐसे हैं गाजीपुर से लगातार दूसरी बार सपा के नवनिर्वाचित सांसद अफजाल अंसारी। उनकी जीत की धमक से पूरी भाजपा एक तरह से सियासी रूप से झुलस गई है। चेहरा काला पड़ गया है। केंद्र में सरकार मोदी के नेतृत्व में बन रही है, यही भाजपा के लिए राहत की बात है।
मुहम्मदाबाद फाटक निवासी सुभान अंसारी के घर 14 अगस्त 1953 में जन्में अफजाल अंसारी को अंसारी परिवार नहीं जानता था कि यह बच्चा आगे चलकर जिला ही नहीं बल्कि पूरे देश में नाम कमाएगा। इसके अंदर लड़ने की इस कदर ताकत होगी कि बड़ी बड़ी शक्तियों के आगे लड़ने से नहीं चूकेगा। जिस तरह से छोटा बच्चा धीरे धीरे बड़ा होता है उसी तरह से अफजाल अंसारी की परवरिश हुई। उनका परिवार आजादी की लड़ाई में शुरू से ही भागीदार होने के कारण सियासी रहा है।
इसलिए अफजाल अंसारी का मनमिजाज भी सियासी था। पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई करने के बाद अफजाल अंसारी प्रिंस टाकीज में नौकरी करने लगे। इधर जब 1985 में विधानसभा चुनाव आए तो सरजू पांडेय की सिफारिश पर अफजाल अंसारी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी हो गए। उस समय करईल का इलाका सामंतवादी ताकतों की जंजीरों में जकड़ा हुआ था।
चुनाव से पहले अफजाल अंसारी करईल में एक जगह आग लगी तो टैªक्टर चलाकर अगलगी पीड़ितों की मदद करने पहुंचे थे। हालांकि उस समय वह विधायक नहीं थे। इसके बाद उन्होंने 1985 में मुहम्मदाबाद से विधायक बनकर सियासत की दहलीज पर कदम रखा। यह जीत अंसारी परिवार के लिए किसी उपहार से कम नहीं थी।
जब मुलायम के सामने जमीन पर लेट गए थे अफजाल
अफजाल शुरू से ही जिद्दी किस्म के इंसान थे। जब दूसरी बार 1989 में विधायक बने तो मुहम्मदाबाद विधानसभा के दर्जनों गांवों में किसी कारण वश कई महीनों तक बिजली नहीं आई थी। बावजूद इसके बिजली विभाग ने बिजली बिल भेज दिया। बिजली बिल देखकर ग्रामीण बौखला गए और सीधे सैकड़ों की संख्या में पहुंचकर अफजाल अंसारी को पूरे वाकए से अवगत कराया। उस समय अफजाल अंसारी चालीस की उम्र पूरी कर चुके थे। एकदम युवा थे। जब उन्होंने यह बात सुनी तो वह विधानसभा के सत्र का इंतजार करने लगे। वह विधानसभा में पहुंचे। उस समय मुख्यमंत्री थे धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव। चूंकि अफजाल अंसारी मुलायम सिंह की पार्टी के विधायक नहीं थे, वह कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक थे। उनका दूसरा कार्यकाल चल रहा था। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच जब मुलायम सिंह अपने आफिस से विधानसभा के लिए चलने गले तो उनके सामने ही लेट गए। यह देखकर वहां हड़कंप मच गया। मुलायम सिंह ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं उठे। कहा कि मेरी बात आज ही सुननी पड़ेगी। हजारों गरीब लोगों पर बिजली विभाग का यह कैसा जुल्म है कि बिजली आई नहीं और हजारों रूपये का बिल भेज दिया गया। मुलायम सिंह ने कहा कि उठो। अभी तुम्हारी समस्या दूर होगी। मुलायम सिंह ने आदेश दिया कि इसकी जांच कराकर पूरा बिजली बिल माफ किया जाए। जब अफजाल फाटक पर पहुंचे तो उससे पहले मीटिंग करके बिजली विभाग ने साफ कह दिया कि जो बिजली बिल भेजा गया है उसे माफ कर दिया गया है। आपको कोई बिजली बिल नहीं देना पड़ेगा।
2002 में कृष्णानंद राय से पहली बार मिली पटकनी
इसके बाद वह लगातार 2002 तक यहां से विधायक रहे। 1989 के चुनाव के बाद से मुख्तार अंसारी का धीरे धीरे दबदबा इलाके में बढ़ने लगा था। अफजाल के दूसरी बार विधायक बनने के कुछ माह बाद 1989 में हरिहरपुर निवासी सच्चितानंद राय की हत्या हो गई। इस हत्याकांड में मुख्तार का नाम आया। इसके बाद अंसारी परिवार का दबदबा जिले में हो गया। धीरे धीरे मुख्तार पूर्वांचल में बाहुबली के नाम से जाना जाता था। इधर अफजाल के छोटे भाई मुख्तार के बढ़ते दबदबे के बाद करईल का एक तबका अपने आपको कमजोर पड़ने लगा। तब 1996 में मनोज सिन्हा ने कृष्णानंद राय को आगे किया। और उन्होंने मुहम्मदाबाद से उन्हें टिकट दिलाया। तब कम वोटों से कृष्णानंद राय चुनाव हार गए। तभी से सिन्हा परिवार और अंसारी परिवार में दोस्ती में गांठ पड़ गई। जब 2002 का चुनाव आया तो पांच बार से अजेय रहे अफजाल अंसारी कृष्णानंद राय से चुनाव हार गए।
मनोज सिन्हा की मां अफजाल को खिलाती थी दही
जब उन्होंने मोहनपुरा गांव में इंटर की परीक्षा दी तो वह मनोज सिन्हा के पिता सुरेंद्र सिन्हा के घर रूकते थे। क्योंकि मनोज सिन्हा के पिता वहां के इंटर कालेज में प्रधानाचार्य थे। उस जमाने में सिन्हा परिवार और अंसारी परिवार काफी निकट था। मनोज सिन्हा की मां अफजाल अंसारी को दही खिलाती थी। मनोज सिन्हा के पिता सुरेंद्र सिन्हा और अफजाल अंसारी के पिता सुभान अंसारी बहुत ही अच्छे दोस्त थे। सुरेंद्र सिन्हा और कादीपुर निवासी पूर्व विधायक वीरेंद्र सिंह के पिता सूबेदार सिंह एक साथ रोजाना मुहम्मदाबाद फाटक के सामने एक दुकान पर बैठते थे। इसके पास तहसील भी हुआ करती थी। जहां पहले से ही अफजाल अंसारी के पिता उन दोनों मित्रों का इंतजार करते थे। कई वर्षों तक यह रिश्ता चलता रहा। इधर एक साथ इंटर की परीक्षा देने के बाद अफजाल अंसारी गाजीपुर पीजी कालेज से स्नातक की डिग्री हासिल किए और मनोज सिन्हा बीएचयू चले गए।
अफजाल की हार के बाद कृष्णानंद की हो गई हत्या
तब अंसारियों की हार की गूंज पूरे जिले में सुनाई दी थी। कृष्णानंद राय हिन्दूवादी छवि के नेता के तौर पर उभरकर सामने आए थे। यह हार अफजाल अंसारी को एक तरह से बार बार खटक रही थी। हालांकि अफजाल अंसारी को सपा ने 2004 में गाजीपुर से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया और उन्होंने तब के सांसद मनोज सिन्हा को करीब दो लाख से अधिक वोटों से हराकर इतिहास रचा। हालांकि 2005 में विधायक रहे कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की हत्या हो गई। इस हत्याकांड ने पूरे पूर्वांचल को झकझोर कर रख दिया। इस हत्याकांड में अफजाल अंसारी, मुख्तार समेत करीब एक दर्जन लोगों को नामजद मुल्जिम बनाया गया। हालांकि सीबीआई ने साक्ष्य के अभाव में सभी को वरी कर दिया। इस हत्याकांड के कारण अफजाल को जेल तक जाना पड़ा।
जब मुलायम से खटकी तो बना लिया कौएद
किसी बात को लेकर मुलायम सिंह की खटकी तो उन्होंने बसपा का दामन थामा। मगर वहां भी अधिक दिन तक अपनी जिद्द के आगे अफजाल नहीं टिके तो उन्होंने कौमी एकता दल बनाया और अपने भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को मुहम्मदाबाद से दो बार विधायक बनवाने में सफल रहे। 2014 का चुनाव कौमी एकता दल के बैनर तले बलिया से लड़ा मगर हार गए। 2016 में सपा में शामिल हुए, मगर विवाद के कारण उन्हें सपा छोड़नी पड़ी। फिर जब 2019 का चुनाव आया तो अफजाल बसपा और सपा के गठबंधन से चुनाव लड़े और बीस हजार करोड़ के विकास को गिरा दिया। दूसरी बार सांसद चुने गए।
बुल्डोजर की गर्जना ने भी नहीं रोके कदम
2019 के बाद मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी पर योगी सरकार ने खूब कार्रवाई की। अरबों की संपत्ति सीज कर दी। दर्जनों मुकदमें दर्ज किए गए। एक तरह से कहर पर कहर बरपाया गया। बुल्डोजर की गर्जना से पूरा फाटक थर्राने लगा। बावजूद इसके अफजाल अंसारी की बुलंद आवाज बुलंद ही रही। वह मोदी योगी और मनोज सिन्हा पर गरजते रहे। इस बीच उनकी संसद सदस्यता भी सजा मिलने के बाद रद्द हो गई। उन्हें कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा। हालांकि बाद वह जेल से रिहा गए। फिर उन्होंने गरजना शुरू कर दिया। मगर सुप्रीमकोर्ट ने उनकी सांसदी बहाल की और कहा कि हाईकोर्ट 30 जून तक चार वर्ष की सजा पर अपना फैसला सुनाए। अब जुलाई में इस फैसला होगा।
मुख्तार की मौत के बाद डीएम से भिड़े गए अफजाल
मुख्तार की मौत के बाद हजारों लोग उन्हें मिट्टी देने आए थे। इस दौरान सैकड़ों पुलिस कर्मियों की तैनाती की गई थी। तब लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू थी। बढ़ती भीड़ देखकर अफजाल अंसारी की डीएम आर्यका अखौरी से तीखी बहस हो गई। यह सोशल मीडिया पर खूब चला। एक पक्ष डीएम को शेरनी कहा तो अंसारी के समर्थकों ने कहा कि अफजाल बब्बर शेर हैं। जब अफजाल अंसारी चुनाव जीते तो डीएम आर्यका अखौरी ने ही उन्हें जीत का प्रमाण पत्र दिया। इसको सोशल मीडिया पर अलग अलग ढंग से देखा गया। डीएम पर अभद्र टिप्पणी करने पर एक युवक को पुलिस ने जेल भी भेज दिया। उधर भाजपा के कमजोर प्रत्याशी पारस नाथ राय को एक लाख 24 हजार वोटों से हरा दिया। अफजाल के खिलाफ माहौल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए। तीन बार सीएम योगी ने सभा की। अमित शाह ने रोड शो किया। जिस शहर में अमित शाह ने रोड शो किया वहां भी भाजपा हार गई। मध्यप्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने भी माहौल बनाने की कोशिश की। मगर मार्च में मुख्तार की मौत के बाद उनके लोगों में गुस्सा था। अफजाल ने सीधे तौर इस हत्या के लिए योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराया। इसका लाभ भी मिला।
अपना ही इस बार अफजाल ने तोड़ा रिकार्ड
जब चुनाव परिणाम आए तो अफजाल अंसारी ने अपना ही रिकार्ड तोड़कर दूसरी बार सांसद बनने में कामयाब हो गए। इस कामयाबी के कारण ही लोग उन्हें सियासत का जादूगर कहते हैं। कहा कि 1985 से लेकर 2024 तक अफजाल अंसारी में वही ताकत और जोश उन्हें सियासत में मजबूत बनाकर रखे हुए हैैै। अफजाल के करीबी और चुनाव में कृष्ण की तरह विजयरथ पर सवार पूर्व विधायक उमाशंकर कुशवाहा कहते हैं कि मैं सांसद जी को सियासत का संत मानता हूं। क्योंकि उन्हें रिजल्ट से पहले परिणाम की जानकारी हो जाता है। इसलिए हम लोग भी उनसे सीखते ही है।