afjal ansari अब भाजपा को डराने लगे हैं सांसद अफजाल अंसारी

0हाईकोर्ट से सजा रद्द होने पर भाजपा को घेर रहे हैं सांसद

0गाजीपुर से गाजियाबाद तक भाजपा को हराने की है तैयारी

02019, 2022 और 2024 के चुनाव में सपा से हारी थी भाजपा

0जनता से चुने जनप्रतिनिधियों की भाजपा में संख्या है शून्य

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। प्रयागराज हाईकोर्ट की सिंगल बेंच से चार वर्ष की सजा को रद्द किए जाने के फैसले के बाद अब सपा सांसद अफजाल अंसारी भाजपा को डराने लगे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे जीत नहीं मिली बल्कि हाईकोर्ट से इंसाफ मिल गया।

यानि भाजपा बेदाग छवि वालों को भी दागी बनाने की पूरी कोशिश करती है, उसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। उन्होंने सीधे तौर पर तीन चुनाव हारने वाली भाजपा के लिए 2027 की भी भविष्यवाणी कर दी। इसको लेकर भाजपा में काफी हलचल है। एक तरह से भाजपाइयों को सांप सूंघ गया है।

हाईकोर्ट की सिंगल बेच का 29 जुलाई को जो फैसला आया उससे अफजाल पर लगा अपराधी होने का वह धब्बा धुल गया। लेकिन आज भी वह मुख्तार अंसारी 191 गैंग के सदस्य बने रहेंगे। क्योंकि सूत्र बताते हैं कि अफजाल अंसारी ने अपनी याचिका में कहीं भी 191 गैंग सदस्य होने के खिलाफ कोई सबूत नहीं दिया। वह सिर्फ 2007 के मुकदमे के खिलाफ अपनी याचिका दायर किए थे।

खैर सीबीआई कोर्ट से पहले ही कृष्णानंद राय के मामले में इस फैसले के बाद अंसारी परिवार में जैसे ईद का पर्व हो, वैसे ही खुशियां मनाई गई। सियासत के बड़े खिलाड़ी अफजाल अंसारी ने कहा कि सावन का पवित्र महीना चल रहा है, भगवान भोले ने उन पर लगे झूठ आरोप को धूल दिया। मानों जलाभिषेक हो गया। खैर जिस सपा के बूते भाजपा को अफजाल ललकार रहे हैं, कभी उन्होंने सपा को भी भला बुरा कहा था। यहां तक की डिंपल यादव को भी उन्होंने उलटा सीधा बोलने से नहीं चूके। वह सपा से जब जब दूर रहे हैं, उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बसपा से वर्ष 2009 का चुनाव हारने के बाद जब उन्होंने कौमी एकता दल बनाया तो 2014 का चुनाव बलिया से लड़े और तीसरे नंबर पर चले गए। जबकि गाजीपुर से लड़े थे तो दूसरे नंबर पर थे।

सपा से तलाक के बाद नंगे पैर मिले थे मायावती से
2016 में कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने गए अखिलेश के पास पहुंचे तो परिवार में विवाद हो गया और सपा से निकाह के तुरंत बाद ही तलाक हो गया। फिर अफजाल और उनके बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी नंगे पैर बहन जी के दरबार में गए और वहां उन्होंने कहा था कि कौमी एकता दल का विलय बसपा में कर रहा हूं और आजीवन बसपा के साथ रहूंगा। उन्होंने इस विलय की बड़ी कीमत वसूल की और मुहम्मदाबाद से सिबगतुल्लाह अंसारी और मउ से मुख्तार अंसारी को टिकट दिलाया। दस वर्ष के सियासी वनवास के बाद बसपा ने उन्हें गाजीपुर लोकसभा से टिकट दिया और वह यदुवंशियों के आर्शीवाद से सांसद बन गए। भले ही सपा के सिंबल से अफजाल सांसद थे, मगर उनकी आत्मा में तो अखिलेश ही बसे थे।

बसपा में रहते बसपा का नहीं किया था प्रचार
बसपा को एक बार फिर उन्होंने लात मारा और अखिलेश के गोद में बैठ गए। जब 2022 का विधानसभा चुनाव आया तो उन्होंने बसपा सांसद रहते पार्टी के लिए प्रचार तक करना मुनासिब नहीं समझा। एैन वक्त पर वह बीमार हो गए। इस तरह से बसपा सातों सीटें हार गई। उसका लाभ सपा को मिला और सातों सीटें सपा जीती। यानि अखिलेश से डील पक्की थी। यहीं नहीं अफजाल की सियासी पैंतरेबाजी रूकी। बसपा सांसद रहते हुए उन्होंने अखिलेश से अपने आपको गाजीपुर लोकसभा सीट से सपा का उम्मीदवार भी घोषित करा दिया और बसपा से इस्तीफा भी देना जरूरी नहीं समझा।

मुख्तार की मौत पर अखिलेश को पेश किया था दही
जब मुख्तार की मौत पर दुख जताने अखिलेश मुहम्मदाबाद के फाटक पर पहुंचे तो उन्होंने अखिलेश के लिए कई तरह की मिठाइयों के साथ ही दही और रबड़ी पेश किया। किसी की मौत पर इस तरह की मेहमानबाजी अफजाल की काफी चर्चा में रही। अखिलेश से पहले हैदरबाद से ओवैसी पहुंचे तो अफजाल नहीं मिले। यही नहीं मेहमानबाजी के लिए विधायक भतीजे मन्नू अंसारी को भेजा तो एक बजे रात को भतीजे के सिर पर समाजवादी लाल टोपी दिखाई दी। जबकि अखिलेश के आने पर यह टोपी गायब थी। यानि अफजाल ओवैसी को यह मैसेज देने की कोशिश किए कि मुसलमान तुम्हारे साथ नहीं है वह समाजवादी है।

मुख्तार के बेटे को दरकिनार कर बेटी को सौंपा उत्तराधिकार
अभी मुख्तार का चालीसवां भी नहीं बीता था कि उन्होंने मुख्तार के छोटे बेटे को दरकिनार करते हुए अपनी बड़ी बेटी नुसरत अंसारी को सपा कार्यालय में पहुंचकर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इसकी भी खूब चर्चा रही। जो व्यक्ति अपने परिवार को भी सियासत के मामले में नहीं बख्शा, वह भाजपा को कैसे धोबिया पाट लगाकर पटकेगा, इसका अंदाजा आने वाले दिनों की सियासत में देखने को मिलेगा। अफजाल के इस तरह के दांव को लेकर अब भाजपा के लोग घबराए हुए हैं।



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