मैं उसको आंसुओं से लिख रहा हूं!
0उनके जोर जुल्म से मिट जाती मेरी सियासी जिंदगी
0जिंदगी को बचाने को दौड़ना पड़ा था गैरों के पास
0पुराने जुल्म की दास्तां याद करके बरस पड़ती हैं आंखें
0अब समझौते के लिए डाल रहे हैं डोरे कैसे करूं समझौता
अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। वो दिन मुझे याद है। जब हम लोग एक थे। सब कुछ सामान्य था। एक दूसरे से प्यार था। पता नहीं किसकी नजर लगी और पूरा सियासी महल ही धुआं हो गया। मगर एक दौर ऐसा आया...। जब वो मुझे गिराने चले थे, खुद ही गिर गए गिराते गिराते।
रिश्तों में इस कदर दुश्मनी निकाली जाती है, यह मैंने जीजा से सीखा। लेकिन वह मेरी छोटी सी गलती को ऐसे दिल से़ लिए कि सब कुछ मिटाने पर पूरी ताकत झोंक दी। मगर मेरे साथ भगवान थे। उन्होंने इस जोर जुल्म को आंखों से देखा और मुझे न्याय दे दिए। फिर भी मैंने आज तक अपनी जुबान नहीं खोली। हर जगह उनकी तारीफ ही करता हूं। आज भी मेरा आर्थिक नुकसान बिरनो वाले की वजह से हो रहा है। फिर भी मैं चुप हूं। इसलिए क्योंकि मैं जीजा का सम्मान करता हूं...। अब किस मुंह से मिलूं और समझौता करूं।
यह सच है कि सियासत जालिम होती है। यह अपने पराए का भेद नहीं जानती। सिर्फ यहां पर पद ही सब कुछ होता है। लोग पद पाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। खैर! जीजा साले की यह मार्मिक सियासी स्टोरी बहुत ही दर्द भरी और रोचक है। कहीं दिलकस है। तो कहीं पर जुल्म की इन्तहां ही इन्तहां देखकर कलेजा बाहर निकल आएगा। बात उन दिनों की है, जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी। मौसम में हल्की हल्की नरमी के कारण बदन में सिरहन पैदा हो रही थी।
हर तरफ चुनाव का शोर सुनाई दे रहा था। उसी समय कौशिक घराने का एक युवा जो अमेरिका से एमडी की पढ़ाई करके भगवाधारी पार्टी की सेवा कर रहा था। उसने चुनाव लड़ने की सोची। फिर क्या था, उसके इस फैसले से परिवार में बवाल मच गया। यह अभागा डाक्टर सच में अभागा था। उसके घर वाले भी उसका साथ नहीं दिए। वह चुनाव हार गया। अपनों ने भी उसके होने की निशानी मांग ली। खैर चुनाव बीतने के बाद सियासी हंगामा खड़ा हो गया। दोनों तरफ से तलवारें खिंच गई।
पहले उन्होंने सालों का आर्थिक नुकसान कराया। फिर सियासी नुकसान कराने को जिला और पंचायत के महल को ध्वस्त करने के लिए जांच बम से हमले किए गए। पूरा पंचायत भवन बम के हमलों से धुआं धुआं हो गया। सिर्फ चीख पुकार सुनाई देने लगी। गाजीपुर से लेकर लखनउ तक चीख पुकार सुनाई दे रही थी। हर कोई बचाव में लगा था। मगर रूस को जिद्द थी कि जब हमने यूक्रेन को कहा कि हद् में रहो तो उसने अमेरिका से मिलकर मेरे खिलाफ साजिश क्यों शुरू की। यानि कश्मीर वाले साहेब से लेकर तमाम उस समय के लोग थे जो यूक्रेन रूपी साले की मदद के लिए अपने दोनों हाथ फैलाए थे।
पहले यूक्रेन के आर्थिक साम्राज्य पर हमले हुए। टेंडर पर हमले में गौरव नाम के व्यक्ति को भी नुकसान उठाना पड़ा। उसके कई बिल में छेद हो गया। भुगतान रोक दिया गया। वह भी त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगा। खैर वह किसी तरह से हाथ पैर जोड़कर धीरे से निकलने में ही अपनी भलाई समझी। इधर रूस लगातार हमले कर रहा था। रूस ने सबसे पहले यूक्रेन के पावर ग्रिड पर हमले करके बत्ती बुझाने की कोशिश की। जांच का जब बम फेंका तो स्ट्रीट लाइट पर पड़ा तो अपर और मुख्य अधिकारी की बलि चढ़ गई। उन्हें यहां से जाना पड़ा। घनघोर अंधेरा छा गया। लेकिन बृजेश तथा मौर्या ने अपने हाथ में कमान संभाली।
हर मिसाइल हमले का जवाब दिया गया। जब रूस को लग गया कि कुछ नहीं होने वाला तब वह अब समझौते में जुटा हुआ है। मुस्कुराने वाले रा प्लस जेश को लगाया गया। वह लगातार समझौते की बात कर रहे हैं। हालत यह हो गई है कि रूस के कहने पर जेश यूक्रेन के घर भी चले जा रहे हैं। घंटों बात हो रही है। यूक्रेन का साफ तौर पर कहना है कि मेरे मदिरायल पर बिरनो वाले ने कब्जा किया है। उसे पहले खाली करें, तभी कोई भी समझौता होगा। साथ ही जब से मेरी जमीन पर उसका कब्जा है उसका पूरा फायेदा मुझे चाहिए और हिसाब भी दिया जाए। इस हमले में मेरा करोड़ों का नुकसान हुआ है।
मेरी दुनिया लूट गई। अगर रूस चाहता है कि समझौता हो तो इसी अंदाज में समझौता होगा। वरना हमारे साथ अमेरिका है। रूस पर हमला करने के लिए परमाणु बम भी अमेरिका ने देने को कहा है। अगर रूस नहीं माना तो हम तो डूबेंगे, सनम तुमको भी ले डूबेंगे वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी। खैर यूक्रेन और रूस के इस सियासी युद्ध पर चाइना यानि राधेमोहन की काग दृष्टि है। वह भी चाहेंगे कि यूक्रेन और रूस लड़कर खत्म हो जाएं, तभी उसका फायेदा मुझे मिलेगा। महाराज जी का आर्शीवाद 2027 में मेरे सिर पर होगा, मैं भी राजधानी की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचकर दहाड़ूंगा, लेकिन कश्मीर वाले साहेब उंचे पदों पर जाने के बाद भी उनकी गिद्ध जैसी नजर गाजीपुर पर पड़ी है।
यही वजह है कि राधेमोहन फूंक फूंकर कदम आगे बढ़ा रहे हैं। खैर जब भी रा प्लस जेश रूस की बात यूक्रेन के सामने लेकर पहुंचते हैं तो जुल्म और बमबारी की आवाजें यूक्रेन के कानों में गूंजने लगती हैं। और पुराने दिन यादकर आंखें भर जाती हैं और जुबां से सिर्फ यही निकल पड़ता है कि मैं उसको आंसुओं से लिख रहा हूं, मेरे बाद कोई उसको पढ़ न सके...।