सियासत के संत को राजभवन भेजने की तैयारी

0यशवंत के जन्मदिन पर जुटे थे यूपी के सियासी धुरंधर

0हर सरकार में पूर्व एमएलसी यशवंत का चलता है जादू

0भले ही भाजपा ने निकाला, मगर बेटा बन गया माननीय

0हर दल के नेताओं की पंचायत करते हैं यशवंत सिंह

0राजनीति का चौधुर चंद्रशेखर के सपनों को कर रहा सच

अजीत केआर सिंह, नई दिल्ली। सपा, बसपा, फिर सपा और अब भाजपा की सरकार में भी पूर्व एमएलसी यशवंत सिंह का डंका बजता रहा है। भले ही भाजपा ने एमएलसी चुनाव के दौरान उन्हें पार्टी से निकाला हो, फिर भी उन्होंने अपनी ताकत दिखाते हुए अपने बेटे विक्रांत सिंह रीशू को एमएलसी बनवाने में कामयाब रहे। फिर वही भाजपा उनको पार्टी में लेने पर मजबूर हो गई।

अब चर्चा है कि उन्हें राजभवन भेजकर भाजपा पूर्वांचल के नाराज राजपूत वोटरों को साधेगी। इसलिए उन्हें एमएलसी नहीं बनाया गया। बीते 21 सितंबर को उनके जन्मदिन पर जहानागंज में स्थित स्व. चंद्रशेखर ट्रस्ट में जुटे हजारों समर्थक, विधायक, सांसद, पूर्व विधायक और ब्लाक प्रमुखों की भीड़ देखकर तो ऐसा ही लगा कि वास्तव में आज भी यशवंत सिंह सियासत के संत हैं। और रहेंगे। तभी तो चंद्रशेखर चबुतरा पर उनका दरबार आज भी सजता है।

पिछले दिनों 21 सितंबर को मऊ जनपद के अलदे मऊ गांव निवासी काकन ठाकुर पूर्व एमएलसी यशवंत सिंह 67 वर्ष के हो गए। उनका जन्मदिन आजमगढ़ के जहानागंज स्थित चंद्रशेखर ट्रस्ट पर मनाया गया। हजारों की भीड़ में सिर्फ सियासत के जानकार लोग पहुंचे। जिनके इशारे पर यूपी की सियासत करवट लेती है। सुबह से शाम तक नेताओं का यहां जमघट लगा रहा। मौजूदा वक्त में यशवंत सिंह एमएलसी नहीं हैं। फिर इतनी भीड़ क्यों। इस पर हमारे संवाददता ने आजमगढ़ से लेकर लखनउ तक जब लोगों से बातचीत की तो पता चला कि यशवंत सिंह का जन्म एक मध्यमवर्गीय राजपूत परिवार में हुआ था।

शुरू से ही गरीबों की मदद करने की भावना ने जब उन्हें गोरखपुर विश्वविद्यालय पहुंचाया तो वहां पर छात्र राजनीति में अपनी छाप छोड़़ दी। उसी समय से वह छात्रों के बीच सियासत के चाणक्य के नाम से जाने गए। दो बार विधानसभा और चार बार एमएलसी का चुनाव जीतकर प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने वाले यशवंत सिंह आबकारी मंत्री का दायित्व भी भाजपा बसपा की संयुक्त सरकार में संभाल चुके हैं। उसी समय से यशवंत सिंह की बढ़ी लोकप्रियता ने यहां तक उन्हें पहुंचा दिया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर के शिष्य रहे यशवंत आपातकाल के दौरान जेल भी जा चुके हैं। मौजूदा सियासत के दौर में खुद लगातार स्थापित होना अपनी खुद की लोकप्रियता होती है, मगर अपनी आने वाली पीढ़ियों को सियासत का बादशाह बनाना है तो आपको यशवंत सिंह से जरूर कुछ सीखना पड़ेगा।

उनके भाई और उनके खास लोग वर्षों से मऊ जनपद के रानीपुर ब्लाक से ब्लाक प्रमुख रहे हैं। आज बेटा खुद एमएलसी है। यही नहीं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से यशवंत सिंह के रिश्ते जग जाहिर हैं। जब योगी सीएम बने तो अपनी एमएलसी की सीट छोड़ने का ऐलान करने वाले यशवंत उसी समय योगी के खास बन गए। अब उनकी वरिष्ठता और अनुभव को देखते हुए भाजपा सरकार राज्यपाल बनाकर पश्चिम बंगाल जैसे ममता के अभेद्य किले को ध्वस्त करने पर भी विचार बना सकती है। अगर ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पश्चिम बंगाल में भाजपा को यशवंत के अनुभव का फायेदा मिल सकता है।

इमरजेंसी के दौरान चंद्रशेखर के हुए करीबी
यशवंत सिंह ने अपनी पढ़ाई पूरी की तो वह समाजवादी नेता पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सानिध्य में चले गए। 1975 में जब इमरजेंसी लगी तो वह चन्द्रशेखर और पूर्व सीएम राम नरेश यादव के काफी करीबी हो गए। इमरजेंसी के दौरान वह 18 महीने के लिये जेल भी गए। इन सब के दौरान वह सियासत में और पक्के होते चले गए।

बसपा को तोड़कर बनवाई थी भाजपा की सरकार
यशवंत सिंह ने कोई पहली बार भाजपा की मदद नहीं की। एक बार पहले भी वह भाजपा की सरकार बनवाने में मददगार साबित हो चुके हैं। 1996 में वह बसपा में चले गए। बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन की सरकार बनायी तो उन्हें आबकारी मंत्री पद से नवाजा गया। ये वही सरकार थी जिसमें छह महीने के टर्म का समझौता था। पर छह महीने सरकार चलाने के बाद बसपा ने हाथ खींच लिये और गठबंधन टूट गया। इस दौरान यशवंत पहली बार भाजपा के लिये बड़े मददगार बनकर उभरे। उन्होंने बसपा के तीन दर्जन से ज्यादा एमएलए तोड़कर जनतांत्रिक बसपा बनाकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनायी।



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