युवराज की भोजपुरी मिठास बनी चुनावी माडल

0चुनावी सभा के दौैरान साहेब के नाम से किया परहेज

0खुले तौर बादशाह सलामत को दे डाली बड़ी चुनौती

0बोले, 50 लाख तक का बादशाह ने नहीं कराया विकास

0अगर विकास कार्य दिखा देंगे तो सियासत से लूंगा सन्यास

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। आंखों पर काला चश्मा। जुबान पर भोजपुरी मिठास। मोदी कट कुर्ता। हाथ जोड़कर मंच पर विराजमान हुए तो ताली बजी। जब बोलने की बारी आई तो भगवाधारी युवराज की जुबान ने भोजपुरी मिठास की बारिश कर दी। जबकि कश्मीर वाले साहेब का बछड़ुआ जनता को आकर्षित करना चाहा मगर जनता ने सिर्फ ताली बजाई।

दिल में भाषण को नहीं उतारा। युवराज अपने 15 मिनट के भाषण में बादशाह सलामत को चुनौती दी। बोले, अगर 50 लाख का विकास कार्य भी दिखा देंगे तो राजनीति छोड़ दूंगा। इस बयान पर सियासी पारा अचानक चढ़ गया। यहां तक की मास्टर साहब भी ताली बजा दिए। साथ ही पब्लिक को यह भाषण खूब पसंद आया। ऐसे करीब आधा दर्जन नुक्कड़ सभाओं में युवराज ने भोजपुरिया ललकार लगाई और बादशाह सलामत को खूब बद्दुआ दी।

बात उन दिनों की है, जब युवराज टीपू के साथ थे। सियासत की अभी एबीसीडी समझ रहे थे। उनको नशा था कि किसी तरह से माननीय बन जाएं। इसके लिए खूब जोर आजमाईश की। मगर टीपू दाढ़ी की पैरवी के आगे झुक गए और अपने नए चेले को टिकट दिला दिया। उस रात युवराज की आंखों में आंसू थे। चेहरा मुरझाया हुआ था। उन्हें अपनों ने संभाला। यहां तक की दोनों सालों ने कह दिया कि जीजा जी कुछ भी हो जाए तोहके चुनाव लड़े के बा। इ सीट हमनीं क विरासत वाली ह...। लहुरीकाशी के उनके कुछ नए सियासी दोस्तों ने कुछ ऐसी ही हिम्मत दी और इस हौसला आफजाई का नतीजा था कि टीपू के चाचा का आर्शीवाद लेकर युवराज मैदान में कूद पड़े सत्ता पक्ष के दाढ़ी वाले प्रत्याशी के खिलाफ।

अब भले ही बादशाह सलामत बुरे लग रहे हों, महक रहे हों। मगर उस समय युवराज के विजय रथ पर सवार होकर उन्होंने ही विजय श्री की गाथा लिखी थी। खूब प्रचार किया। प्रधानों को साथ लिया। हर जगह सियासी गुणा गणित लगाया। इधर दाढ़ी ने अपने चेले के साथ ही भितरघात करके युवराज से गुप्त समझौता कर लिया था। जब चुनाव परिणाम आए तो युवराज मामूली वोटों के अंतर से जीत गए थे। जीत की खुशी में जश्न मनाया गया। अब बादशाह सलामत का अपनी पीठ से लगा ठप्पा हटाना चाह रहे थे। उस समय सपा के खिलाफ माहौल था। तब कश्मीर वाले साहेब दिल्ली वाले साहेब की रेल पर सवार थे। जब वह सियासी रेल लेकर लहुरीकाशी आते तो उसके हार्न से लोगों के कान गूंज जाते थे। युवराज को लग चुका था कि अब टीपू कभी नहीं आएंगे। उन्होंने हवा के रूख को पहचाना और कश्मीर वाले साहेब की रेल पर सवार हो गए। दोस्ती ऐसी की चरण स्पर्श तक पहुंच गई। वह भगवाधारी हो गए।

2017 का चुनाव आया तो भगवा का पूरे प्रदेश में परचम लहरा गया। टीपू की साइकिल जगह जगह पंचर हो चुकी थी। ऐसा लगा कि साहेब यूपी के बजीरे आला बन जाएंगे। मगर गोरखपुर वाले बाबा को ही यूपी का ताज पहनाया गया। तब युवराज छटपटाने लगे। उन्होंने कई महीनों तक जुगाड़ खोजा। जुगाड़ खोजते खोजते वह बाबा के दरबार में पहुंच गए। पहले उन्होंने बाबा के यहां आना जाना शुरू किया। फिर बाबा से अपने लिए खाकी वाली फौज मांग ली। फौज मिलते ही युवराज के पैर सातवें आसमान पर पहुंच गए। इसी बीच जब बाबा जिले में आए तो उन्हें अपने उड़न खटोले में बैठा लिया। तब ऐसा कहा जाने लगा कि युवराज को बाबा ने साहेब की रेल रोकने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। बाबा के आने के बाद साहेब से युवराज ने दूरी बना ली। सब कुछ बाबा ही थे। साहेब की कौम के लोग भी मान लिए कि हमारे नेता के खिलाफ नया युवराज राजधानी में जाकर साजिश रचता है। इसकी पुष्टि तब और हो गई कि जब बादशाह सलामत ने साहेब को 2019 के चुनाव में एक लाख से अधिक वोटों से पटखनी दे दी।

तब कहा जाने लगा था कि युवराज ने अपना बयाना बादशाह सलामत को लौटाया है। यानि साहेब को हरवाने में युवराज ने भी बड़ी भूमिका अदा की थी। इस खबर का सपना कई महीनों तक सोते जागते साहेब की कौम को दिखाई देता था। जब युवराज जिले में इस बात का संदेश देने में कामयाब रहे कि उनके असली नेता बाबा हैं तो उन्होंने सियासी कालर टाइट कर ली और कहने लगे कि बाबा का आदेश सिर आंखों पर है। तब से लेकर अभी तक साहेब से युवराज की दूरी बनी हुई है। बीच में ऐसा लगा कि वह साहेब से समझौता कर लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। साहेब की टीम भी युवराज से दूरी बनाने की खूब कोशिश की। जब दबंग ने दबंगई के साथ खुलासा किया कि अगर युवराज से दूरी बनाई तो कमल का जहाज 2019 की तरह ही 2024 में भी टाईटेनिक बनकर डूब जाएगा और बादशाह सलामत इतिहास रच देंगे। खबर का असर ऐसा हुआ कि आज यानि मंगलवार को जंगीपुर विधानसभा के आधा दर्जन गांवों में युवराज काला चाश्मा लगाकर दिखाई दिए।

अपने पुराने गुरू घराने के मुखिया को खूब ललकारा। बहुत कुछ कहा। अगर युवराज का भाषण बादशाह सलामत ने सुन लिया तो उन्हें रात का खाना अच्छा नहीं लगेगा। वह खूब आंसू बहाएंगे। मन ही मन कहेंगे कि जिस चेले को सियासत का युवराज बनाया, उसने मेरे साथ यह कैसा खेल खेल दिया। और कहने लगे कि हमेशा एक दूसरे के हक़ में दुआ करेंगे ये तय हुआ था.. मिलेंगे बिछड़े मगर तुम्ही से वफ़ा करेंगे ये तय हुआ था। ठीक है तुम कहीं और मैं कहीं और हूं। मगर यह तो नहीं कि मुझे तुम सियासत में इतना नकारा साबित कर दोगे। जैसे मैं कुछ रहा ही नहीं हूं। मैं पांच बार विधायक और दो बार सांसद रहा। गाजीपुर की सियास वर्षों तक मेरी अंगुलियों पर नाचती रही। विकास पुरूष के विकास को धराशायी कर दिया और तुम मुझे ऐसा बोलोगे कि मैं पचास लाख तक का भी काम नहीं कराया।

इसके बाद उपर से चुनौती दे रहे हो कि राजनीति से सन्यास ले लूंगा। अगर मुझे पता होता कि तुम जिसकी अंगुली पकड़कर आगे बढ़ते हो उसे ही काट दोगे तो मैं तुम्हें कभी माननीय नहीं बनाता। खैर छोड़िए। यही दर्द कश्मीर वाले साहेब का भी है। वह भी अपनों के बीच बैठते हैं तो कहते हैं कि अगर 2017 विधानसभा चुनाव से पहले इसको पार्टी में नहीं शामिल करता तो यह आज मुझे चुनौती नहीं देता।



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