ghazipurबादशाह की विरासत और कब्र की आवाज

0बेटी को बादशाह ने विरासत सौंपी तो भाई ने बहाए आंसू

0हमारे बेटे बहू थे इस बार गाजीपुर लोस सीट से हकदार

0चालीसवां भी नहीं बीता, बादशाह ने कर दिया बड़ा खेल

0अब उनकी रूह बार बार सपने में भी कर रही है परेशान

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। भइया! आदाब अरजे। मुझे उम्मीद है कि आप खैरियत से होंगे। भइया, मेरा अभी चालीसवां भी नहीं बीता और आपने विरासत अपनी बेटी को सौंप दी। आप एक बार भी मेरे बेटे के बारे में सोचे होते। उसके वालिद का इंतकाल हो गया और आपको विरासत की सूझ रही है।

भइया आप और परिवार की सलामती के लिए मैंने क्या नहीं किया। आप लोगों के लिए सामंतवादी ताकतों से लड़ा। 20 वर्षों तक लगातार जेल में रहा। एक बार भी मेरे छोटे बेटे और बहू के बारे में सोच लिए होते तो शायद अभी आप विरासत की घोषणा नहीं करते। यह मार्मिक आवाज उस कब्र से आ रही है जहां पर भाईजान आराम फरमा रहे हैं। यह आवाज बादशाह सलामत को आजकल काफी परेशान और हैरान करके रख दी है।

बात उन दिनों की है जब वह क्रिकेट खेल रहे थे। उनके बड़े भाई माननीय बन चुके थे। करईल की धरती पर सामंतवाद का झंडा बुलंद था। मैं काफी लंबा और स्मार्ट था। शिकार और क्रिकेट खेलने का शौक था। 1989 से पहले मेरी दोस्ती सैदपुर के कुछ खास लोगों से हो जाती है। मैंने दोस्ती का फर्ज निभाया। उस समय करईल के बबुआन की तूती बोलती थी। वह बाजार में बुलेट से घूमते थे। वह बहुत आपको बोलते थे।

मैंने भी कसम खाई और वह दोबारा नहीं दिखाई दिए। इसके बाद मेरा नाम भी आया। मगर कुछ नहीं हुआ। भले ही आप 1985 में माननीय हो गए थे। 1989 से लेकर 2019 तक भैया आपके लिए मैंने क्या नहीं किया। हर जगह साथ दिया। परिवार के मान सम्मान को देश से लेकर विदेशों तक फैलाया। आप लोगों की खुशी के लिए मैं वह सब कुछ किया जो एक भाई करता है। जब आप चुनाव हारे, तब मैंने करईल वाले माननीय को दोबारा चुनाव भी लड़ने नहीं दिया। उसकी सजा में मुझे 20 वर्षों तक काल कोठरी में रहकर जिंदगी गुजारनी पड़ी। काल कोठरी में रहकर भी मैं परिवार और हजारों अपनों की चिंता करता था।

उन्हें खूब दौलत और शोहरत भी दिलाई। आपके हर चुनाव का प्रबंध मेरी जिम्मेदारी थी। मेरे लोग हर पल आपके साथ साए की तरह खड़े रहते थे। मैं जब डाकुओं वाली काल कोठरी में था, तब मुझे मारने की कोशिश की गई। मैं कोर्ट में बोला भी। मेरी हालत खराब थी तो आप देखने भी आए। भैया आप इतनी जल्दीबाजी में थे कि चले गए। अगर आप रूक गए होते तो भैया मेरा इलाज हो जाता। वो लोग मेरा इलाज रोक लिए। मेरी छोटे बेटे से बात भी हुई। उससे मैंने कह दिया था कि अब लगता है कि नहीं बच पाऊंगा, वह मेरी आखिरी आवाज थी। इसके बाद मेरी हालत खराब होने पर भी वो लोग मुझे काल कोठारी में ले जाकर बंद कर दिए और मेरी मौत हो गई।

मेरी मौत के बाद घंटों वो लोग इलाज का झूठा नाटक करते रहे। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया। मैं बाबा के सिपाहियों के आगे लाचार था। अगर आप वहीं रूक गए होते तो शायद मैं बच जाता। मेरा इंतकाल हो गया तब भी मुझे लेने आप नहीं आए। मेरा छोटा प्यारा बेटा और बहू ही मुझे लेकर मेरे वतन पहुंचे। आपको आना चाहिए था। या फिर बड़े वाले भाईजान को आना चाहिए था। मुझे लेकर जब चले तो उस समय मेरे बेटे और बहू के आंखों से आंसू नहीं रूक रहे थे। यह देखकर मेरा कलेजा फटा जा रहा था। ऐसा लगा कि मैं खुदा से कह दूं कि कुछ देर मुझे जीला दो, ताकि मैं अपने बेटे और बहू के आंखों के आंसुओं को पोछ दूं। मैं जीते जी कभी भी बेटों और बहू के आंसू नहीं देखे थे।

खैर जब मैं पहुंचा तो मेरी कौम को रोकने की साजिश हुई। मेरा जानजा उठने से पहले मेरे बेटे ने मुझे दिली सलामी तब दी, जब उसने मेरी मूछों पर ताव दिया। उसी समय ऐसा लगा कि खुदा ने मुझे जन्नत नसीब कर दी। मेरे जनाजे में उमड़ी भीड़ मेरी ताकत थी। निश्चित तौर पर पूरा परिवार गमजदा था। मेरी बेगम भी मेरी मिट्टी में शरीक नहीं हो पाई। काफी दिनों तक मेरे कब्र पर चाहने वालों ने फातिहा पढ़ा। मेरा चालीसवां अभी बीता नहीं। आपने मेरे बेटे और बहू से मशविरा किए बगैर बेटी को विरासत सौंप दी। भैया विस चुनाव का वो साल भी याद कर लीजिए।

जब मैं अपनी बेगम को गाजीपुर सदर सीट से चुनाव लड़ाना चाहता था और आपने परिवार की किसी औरत के चुनाव लड़ने पर फतवा जारी करके उसे रोक दिया था। आज वही काम आप कर रहे हैं जरा सोचिएगा भैया, आप क्या कर रहे हैं। आपको मेरी मौत से अधिक विरासत की चिंता थी। मेरे बेटे के सिर से बाप का साया हट चुका है। आपको इस समय उससे बात करनी चाहिए थी। मेरे बेटे ने कहा था कि मेरे अब्बू के लिए कोई गोली नहीं बनी थी। लेकिन बाबा की खाकी ने साजिश करके मुझे मार डाला। छोड़िए! भैया कोई बात नहीं। लेकिन मैं कब्र में भी सोकर आपकी इस करनी पर आंसू बहा रहा हूं। आंसुओं से मेरी कब्र दरिया बन गई है। अगर मेरी बेगम आ गई होतीं तो परिवार की सहमति से निर्णय लिया जाता कि किसको चुनाव लड़ाया जाए। मगर आप हर वक्त सियासत की चासनी में डूबे रहना चाहते हैं।

आपने मेरे अनाथ बेटे और बहू के साथ भी सियासी चाल चल दी। लेकिन यह बात जान लीजिए, मेरी रूह टीपू के सपने में आएगी और मेरा चालीसवां बीतने के बाद छोटा बेटा दोबारा टीपू से मिलकर गाजीपुर सीट से दावेदारी भी ठोकगा। लेकिन मेरी रूह कभी भी आपको माफ नहीं करेगी।



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