हम किसके जीजा हैं!

0जीजा को साला देता रहा धोखे पर धोखा

0जीजा ने संवारा तो साले ने दे दी चुनौती

0तभी तो जीजा ने बत्ती बुझाने की कर ली तैयारी

0साले ने कटिया कनेक्शन लगाकर जला दी बत्ती

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। बात उन दिनों की है। जब जनपद करोना काल से कराह कर उबरने की कोशिश कर रहा था। अचानक जिले के चुनाव में साले के प्रेम के आगे झुकते हुए जीजा ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।

यदुवंश की वंशनी आगे जा रही थी तो जीजा ने ब्रेक लगाकर साले को गद्दी सौंपने की कसम खा ली। कसम ऐसी खाई कि कश्मीर की ठंडी हवा भी कुछ नहीं कर पाई और साला अचानक साहब बन गया। फिर क्या था, पंचायत के लोगों को भोज दिया गया। खूब जश्न मनाया गया। मगर इस जश्न की कहानी अधिक दिनों तक नहीं टिकी। कुछ दिनों बाद साले ने मनमानी करनी शुरू कर दी।

नतीजा यह निकला की साले की बत्ती बुझाने के लिए जीजा ने प्लान बी तैयार कर लिया। हालांकि यह कहानी राजधानी तक पहुंची। महराज जी के दरबार में भी लोग गए। मगर साले की मनमानी कम नहीं हुई। तभी लहुरीकाशी के लोगों की जुबान से सिर्फ यही निकल पड़ा। कभी भी सालों को अपनी बराबरी की कुर्सी मत दो। वरना सियासत की बाट लग जाएगी।

कहानी दो दशक पुरानी है। जीजा के लंबे लंबे बाल खूब पसंद आते थे। हीरो जैसा चेहरा और बिजनेस का आईकान के कारण वह दामाद भी बन गए। पहली बार प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत में भी पहुंच गए। कभी जीजा से नजर नहीं मिलाने वाला युवक सिर्फ जी जीजा कहकर काम चला लेता था। यह बात जीजा के दिल को छू गई। हां इतना जरूर था कि साले की सियासी महत्वकांक्षा हिलोरे मार रही थी।

उसका परिवार बड़ा था। वह डाक्टर से आगे निकलना चाहता था। परिवार ने सपोर्ट किया तो उसने अपनी बेगम को जिले की पंचायत तक पहुंचा दिया। अब जिले की रानी साहिबा बनाने की बारी आई तो वह कमल के फूल तक नहीं पहुंच पाया था। इधर यदुवंश की वंशनी कमल के फूल की बदौलत चुनौती पर चुनौती दे रही थी। जीजा भी अभी अपनी प्रतिष्ठा दांव पर नहीं लगा पाए थे।

मगर जीजा को यह बात लग गई, जब यदुवंश का लीडर जमानियां स्टेट की रानी साहिबा के साथ महराज जी के दरबार में दावेदारी करने पहुंच गया था। जैसे ही यह फोटो वायरल हुई जीजा के कान खड़े हो गए। वह महराज के पास पहुंच गए और कहने लगे कि कुछ भी हो जाए साले को आर्शीवाद दे दीजिए। फिर क्या था। महराज जी भी मुस्कुराए और स्वतंत्र की स्वतंत्रता पर रोक लगाते हुए साले को शामिल कराने का इशारा कर दिया। इसके बाद बलिया वाले पाठक जी आए। दोनों का फ्लोर टेस्ट हुआ।

बात कहां से बिगड़ी कि अचानक साले की बेगम कमल की सवारी करने के लिए सबके सामने आ गई। घोषणा हो गई कि लहुरीकाशी की सियासत की चाभी साले की बेगम को मिलेगी। इधर जिले में हलचल पर हलचल हो रही थी। गांवों के पंचों को अपने पाले में करने की कवायद तेज हो गई। बनारस के रिजार्ट में रखा गया। अच्छे भोजन परोसे गए। जब मतगणना हुई तो साले की बेगम लहुरीकाशी स्टेट की महरानी घोषित हो चुकी थी। हर तरफ खुशी का माहौल था। जीजा खुश थे।

उनके लिए बड़ी जीत थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। अचानक बात बिगड़ी और बात बिगड़ती चली गई। हालात यह हो गए कि जीजा साले की तकरार का सियासी पर्दा हट चुका था। दोनों तरफ से तलवारें खिंच चुकी थीं। जांच पर जांच होने लगी थी। बत्ती बुझाने की तैयारी थी। जांच में कई बत्तियां बुझी हुई थीं। राजधानी से लेकर जिले तक जांच शुरू हो गई। खूब मीडिया बाजी हुई। कइयों ने समझौते की कोशिश की। अब साला कई सीआर जीजा का पचा चुका था।

जीजा के कहने के बाद भी उसने कुछ नहीं दिया। आज भी हालात जस के तस हैं। फिर क्या था जीजा ने अपनी इज्जत बचाने के लिए मौन रहना पसंद किया। मन ही मन सोचने लगे कि साले को कहां से कहां लाकर हमने बहुत बड़ी सियासी भूल कर दिया। इधर जख्मी साला छोटी राजधानी से लेकर बड़ी राजधानी तक कमल का फूल लेकर अपने आंसुओं के साथ पहुंच जाता था। और जीजा के वार पर वार कहानी सुनाने लगता था। कई लोग समझौता भी कराना चाहे।

लेकिन साले की सियासी उड़ान ने पूरी बात बिगाड़कर रख दी। मगर जीजा ने भी ठान लिया कि कुछ भी हो जाए अगली बार कुछ भी होने नहीं दूंगा...। चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। तभी जीजा जी अपने लोगांे से कहने लगे कि हम किसी के जीजा नहीं हैं।



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