एलजी के आगमन से तय होगी जीत

024 अप्रैल को 2024 का चौसर खेल सकते हैं मनोज सिन्हा

0सिन्हा के आगमन से भाजपा प्रत्याशी को मिलेगी ताकत

0एलजी पर होगा भाजपा प्रत्याशी को जीताने दारोमदार

0कईयों को पछाड़कर बिना टिकट मांगे पारस बने प्रत्याशी

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। जम्मू एवं कश्मीर की वादियों में पत्थरबाजी बंद कराकर अमन का पैगाम देने वाले वहां के एलजी मनोज सिन्हा का आगमन लहुरीकाशी की सियासत में नई हलचल पैदा करेगा। वह 24 अप्रैल के अपुष्ट आगमन के दौरान 2024 का चौसर खेलकर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में माहौल खड़ा करेंगे।

कई दावेदारों को पछाड़कर बिना टिकट मांगें उम्मीदवार बने पारस राय को जीताने का असली दारोमदार अप्रत्यक्ष रूप से एलजी मनोज सिन्हा का ही होगा। क्योंकि पारस राय उन्हीं की पसंद से उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। तभी तो एलजी के आगमन से पूर्व उनके पुत्र अभिनव सिन्हा ने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में माहौल खड़ा करने की पूरी कोशिश की है।

गाजीपुर लोकसभा सीट से वर्ष 1984 से लेकर 2019 तक लोकसभा चुनाव लड़ने वाले मनोज सिन्हा 2024 के चुनाव में उम्मीदवार नहीं होंगे। ऐसा पहली बार हुआ जब श्री सिन्हा चुनाव नहीं लड़ेंगे। 2009 लोकसभा का चुनाव छोड़ दिया जाए तो वह यहां से 9 चुनाव लड़े, जबकि बलिया से उन्होंने एक चुनाव लड़कर मौजूदा भाजपा उम्मीदवार एवं राज्यसभा सांसद नीरज शेखर के हाथों उन्हें पराजय हाथ लगी थी।

2019 का चुनाव हारने के बाद 2020 में जम्मू एवं कश्मीर में एलजी बनने के कारण मनोज सिन्हा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। उनके चुनाव नहीं लड़ने के कारण कई दावेदार सामने थे। जिसमें उनके पुत्र अभिनव की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही थी। इसके अलावा पूर्व मंत्री विजय मिश्रा, एमएलसी विशाल सिंह चंचल, पूर्व विधायक अलका राय, पूर्व विधायक सुनीता सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष सपना सिंह, पूर्व जिलाध्यक्ष बृजेंद्र राय, विजय यादव, प्रो. शोभनाथ यादव, संतोष यादव, सानंद सिंह और सरोज कुशवाहा जैसे नाम चर्चा में थे।

उपरोक्त नाम में पूर्व जिलाध्यक्ष भाजपा बृजेंद्र राय का ही नाम एक ऐसा था जो जिलाध्यक्ष सुनील सिंह से चुनाव लड़ने की बात कह चुके थे। वह खुलेआम दावेदारी भी कर रहे थे। उनके बैनर पोस्टर भी लगे थे। उन्हें भरोसा था कि पार्टी टिकट देगी लेकिन उनका नाम कट गया और शिक्षा क्षेत्र से आने वाले संघ के सीनियर कार्यकर्ता पारसनाथ राय को मैदान में उतार दिया गया।

पारस राय खुद अपने बयान में कह चुके थे कि न तो मैंने टिकट मांगा था और न ही आवेदन किया था। पार्टी ने जो जिम्मेदारी दी है उसका पालन कर रहा हूं। अब सवाल उठता है कि आखिर पारस राय ही क्यों...। पारस के अलावा भाजपा को और चेहरे नहीं दिखाई दिए। ऐसा क्यों। इसके पीछे का जो तर्क छनकर सामने आया है उसमें बताया गया है कि पारस राय मनोज सिन्हा के बेहद करीबी थे। 1984 से लेकर 2019 का चुनाव संचालन पारस राय की ही जिम्मेदारी थी। संघर्ष के दौर में कंधा से कंधा मिलाकर चलने वाले पारस ही मनोज सिन्हा के साथ थे।

बेहद भरोसा के साथ ही अभिनव सिन्हा की आने वाले दिनों में मजबूत दावेदारी में कोई खतरा पैदा न हो उसमें पारस राय बेहद फिट बैठते हैं। सियासत के जानकार मानते हैं कि मनोज सिन्हा अभी तक अपने बेटे अभिनव को राजनीति में स्थापित नहीं कर पाए हैं। 2029 की सियासी फसल काटने के लिए ही पारस राय को 2024 में प्रत्याशी बनाए हैं।

अब देखना होगा कि पारस राय विजय रथ का सातवां फाटक तोड़ पाते हैं या फिर अफजाल की चुनौती के आगे भाजपा सरेंडर बोलती है। वैसे पूर्व जिलाध्यक्ष बृजेंद्र राय लगातार प्रत्याशी बदलने के लिए सोशल मीडिया पर अपनी बात दमदारी से रखे हुए हैं।



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