रामकरन यादव के बाद पूर्वांचल के गांधी बनें अफजाल

0गाजीपुर के अधिकांश फैसले अफजाल की सलाह पर लेते हैं अखिलेश

0बसपा के सांसद बनने के बाद अफजाल का सपा के प्रति उमड़ा था प्रेम

0भले ही बसपा के थे पांच वर्ष सांसद, मगर सपा के लिए धड़कता था दिल

0ओपी राजभर की पार्टी से गठबंधन कराने में अफजाल ने निभाई थी भूमिका

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। बेशर्म सियासत की मैं तहरीर नहीं हूं, सुन ले ये हुकूमत मैं तेरी जागिर नहीं हूं, नफरत के समंदर में मैं खो ही नहीं सकता, मैं एक किसी रंग का हो ही नहीं सकता। इमरान प्रतापगढ़ी का यह शेर जब बसपा सांसद अफजाल अंसारी ने चुनाव जीतने के बाद राजधानी में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को सुनाया तो वह उनके मुरीद हो गए।

इस शायरी ने अफजाल और अखिलेश के रिश्तों पर इस कदर असर डाला की 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने ओपी राजभर की पार्टी से पर्दे के पीछे आकर समझौता करा दिया। नतीजा यह निकला कि गाजीपुर सहित पूर्वांचल की तमाम सीटों पर साइकिल पंचर होने से बच गई और कमल मुरझा गया। तभी तो अखिलेश उन्हें रामकरन दादा जैसा सम्मान देने लगे। आज अफजाल जो कुछ कहते हैं उन्हें मुस्कुराते हुए अखिलेश मान लेते हैं। शायद सपा में अफजाल जैसा कद किसी का नहीं है।

अंसारी परिवार सपा में आने पर हुआ था बवाल
बात उन दिनों की है, जब वर्ष 2016 में शिवपाल यादव ने अंसारी परिवार को सपा में शामिल कराने का प्रस्ताव रखा था। तब अखिलेश यादव यूपी के सीएम हुआ करते थे। उस समय साफ सुथरी छवि अखिलेश की बन रही थी। जैसे ही शिवपाल ने कौमी एकता दल का सपा में विलय कराकर अंसारी परिवार को सपा में शामिल कराया, यादव परिवार में जंग छिड़ गई। अखिलेश आग बबूला हो गए और तत्काल अंसारी परिवार को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यह जंग यहीं खत्म नहीं हुई। चाचा भतीजे के रिश्ते भी तल्ख हो गए। शिवपाल के लोगों को मंत्रिमंडल से बर्खास्त तक कर दिया गया। जिसमें गाजीपुर से पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह और शादाब फातिमा भी शामिल रहीं। इसके साथ ही कई और नेता अखिलेश के निशाने पर आ गए। शिवपाल भी पार्टी से बाहर हो गए। उन्होंने अलग दल बनाया।

वर्षों तक बनते बिगड़ते रहे चाचा भतीजे के रिश्ते
मगर मुलायम सिंह के चाहने के बाद भी चाचा भतीजे का दिल कई वर्षों तक नहीं मिला। कई वर्षों तक अंसारी परिवार के प्रति अखिलेश का नजरिया अच्छा नहीं रहा। 2019 का जब लोकसभा चुनाव आया तो सपा बसपा का गठबंधन हो गया। गाजीपुर से अखिलेश अफजाल के नाम पर राजी नहीं थे। हालांकि बात किसी तरह से बन गई और अफजाल अंसारी बसपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने में कामयाब हो गए। अखिलेश यादव चुनाव के एैन वक्त पर अफजाल का प्रचार करने मायावती के साथ गाजीपुर आए और यदुवंशियों से अफजाल को जीताने की अपील की।

अफजाल ने लिखी थी सपा सुभासुभा गठबंधन की पटकथा
खैर! अफजाल ने बीस हजार करोड़ के विकास को पटक दिया और वह सांसद हो गए। चुनाव जीतने के बाद अफजाल और अखिलेश के रिश्तों में गर्मजोशी आने लगी थी। धीरे धीरे सपा का पूर्वांचल में किला कमजोर होने लगा था। तब अफजाल ने राय दी कि ओपी राजभर से गठबंधन हो गया तो हम लोग 2022 में सरकार बना लेंगे। तब पर्दे के पीछे अफजाल अंसारी ने पूरा सियासी जाल बुना और राजभर को सपा से गठबंधन करने के लिए राजी करा लिया। जो रतनपुरा में पहली रैली सपा और सुभासपा की हुई उसकी भी पटकथा अफजाल ने लिखी।

समझौते की कीमत भतीजों को विधायक बनाकर वसूली
इस समझौते की कीमत अफजाल ने दोनों भतीजों को मुहम्मदाबाद और मउ से विधायक बनाकर वसूल की। खैर सरकार तो नहीं बनी, लेकिन सपा की सीटें बढ़ गईं। गाजीपुर की सातों सीटें सपा जीत गई। जिसमें दो राजभर की पार्टी जीती थी। चुनाव बाद राजभर का दिल बदला और वह अखिलेश से बगावत करके गठबंधन तोड़ लिया। मगर अफजाल ने अखिलेश से अपने रिश्ते और मजबूत कर लिए। बसपा सांसद रहते वह बिना इस्तीफा दिए सपा के उम्मीदवार बनने में सफल हो गए। उनकी बेटी के निकाह में अखिलेश घंटों बैठे।

मुख्तार की मौत पर फाटक पहुंचे थे अखिलेश
मुख्तार की मौत पर फाटक पहुंचे थे अखिलेश अखिलेश जब मुख्तार की मौत हुई तो मुहम्मदाबाद के फाटक तक पहुंचे। परिवार को हिम्मत दी। सरकार से जांच की मांग की। यही कारण है कि मुस्लिम वोटों की सियासत ने गाजीपुर के लिए अखिलेश को मजबूर कर दिया। अखिलेश के आने से पूर्व ओबैसी एक बजे रात को पहुंचे तब अफजाल उनसे नहीं मिले। मन्नू को एक बजे रात को लाल टोपी लगानी पड़ी। तब अफजाल ने यह संदेश ओबैसी को दिया कि मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है। हम लोग अखिलेशवादी हैं। अफजाल के ओबैसी से नहीं मिलने की आलोचना भी हुई। कहा गया कि किसी के घर कोई हैदराबाद से चलकर घर पहुंचा है और परिवार का मुखिया न मिले तो इसे कठोर दिल वाला कहते हैं के सवाल पर अफजाल ने सीधे कहा कि अगर ओबैसी दिन में आते तो मिल लेते। इसके बाद अखिलेश दिन में आए तो विधायक भतीजे के सिर पर टोपी गायब थी।

अफजाल के आगे ओपी का घटा कद
अखिलेश ने अफजाल के आगे सभी नेताओं के कद घटा दिए। अफजाल ने पार्टी बनाई। कई पार्टी बदली। मगर पूर्व मंत्री ओपी सिंह कभी समाजवादी झंडे से अपने आपको इतर नहीं समझा। उन्हें जब अखिलेश ने बर्खास्त किया तब भी वह साइकिल पर ही सवार रहे। बावजूद इसके आज अफजाल के आगे ओपी सिंह का कद सपा में काफी छोटा हो गया। अफजाल 1985 में विधायक बने, जबकि ओपी 1989 में विधायक बनकर राजनीति शुरू की। अन्य नेताओं की अफजाल के आगे कोई सियासी हैसियत ही नहीं है।

अब सपा से बेटी नुसरत को लड़ना चाहते हैं चुनाव
सपा के बड़े नेता के कहे बगैर जब अपनी बेटी नुसरत को अफजाल सियासी मंच से अपना वारिश घोषित कर रहे थे, तब हर किसी ने कहा कि निश्चित तौर पर दादा के बाद वह अकेले सपा में पूर्वांचल के गांधी हो चुके हैं। अफजाल चाहते हैं कि जीते जी अपनी बेटी को संसद में पहुंचाकर सियासी जादूगर बना रहूं...। और सपा को सत्ता में लाने तक अपनी पूरी जिंदगी लगा दूंगा।



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