ghazipur लहुरीकाशी की सियासी तपन को कम करेंगे साहेब

0कश्मीर की ठंडी हवा का झोंका फिर करेगा मदहोश

0लहुरीकाशी के लोगों को फोन करके ले रहे हालचाल

0जिले में दो दिवसीय आगमन बनाएगा सियासी माहौल

सियासी मिर्ची

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। हेल्लो! का हो फलाने। का हाल चाल बा। घर परिवर कुल ठीक बा न। सोचलीं हं की हाल चाल हो जाए। काल आवत बानीं। तिवारी जी क स्कूल पर शाम के। रहिएगा जरूर। कुछ ऐसी ही फोन काल कश्मीर की ठंडी वादियों से जब लहुरीकाशी में आ रही है तो सियासी तपन अचानक कम हो जा रही है। इस तरह की करीब बीस से 25 फोन काल रोजाना कश्मीर से आ रही है।

सब एक दूसरे से चर्चा कर रहे हैं कि कहो तोहरो पर फोन आइल रहल ह। इस पर लोग मुस्कुरा दे रहे हैं। कल से दो दिवासीय दौरे पर कश्मीर वाले साहेब फिर आ रहे हैं। वह सैदपुर से लेकर जमानियां और जहूराबाद विधानसभा में पहुंचकर उन लोगों का कान फूकेंगे, जो उनके अपने हैं। इसको लेकर बादशाह समालत के लोगों की धड़कनें बढ़ गई हैं।

जिले में कश्मीर वाले साहेब की जिद्द की खूब चर्चा हो रही है। साहेब जब खुद नहीं लड़े तो यह चर्चा रही कि उनका बछड़ुआ लड़ेगा। लेकिन वह भी मैदान में नहीं आया। अब 70 वर्ष के मास्टर साहब को मैदान में उतार दिया गया। उनको दवा भी लेनी पड़ती है। खैर छोड़िए! चुनाव का माहौल है। हर तरफ चुनाव का शोर सुनाई दे रहा है। बादशाह सलामत ने अपना वारिस अपनी लाडली बेटी को मैदान में उतार दिया। बेटी मंदिरों में दर्शन पूजन कर रही है। बादशाह सलामत को मौलानाओं के फतवे से भी कोई डर नहीं है।

वह कहते हैं कि हम समाज की सेवा करते हैं, इसलिए सभी धर्म को मानते हैं। गोदी मीडिया चाहे जो कहे। बादशाह सलामत के वारिस घोषित करने के बाद पहली बार कश्मीर वाले साहेब आ रहे हैं। उनका भी मन कश्मीर की ठंडी वादियों में लग नहीं रहा है। रोजाना 20 से 30 लोगों को फोन कर रहे हैं। उनका भी प्रेम इस समय कुछ अधिक ही उमड़ रहा है। वरना उन्हें किसी से बात करने की फुर्सत नहीं मिलती थी। फोन करने पर बताया जाता था कि साहेब अभी बिजी हैं। भाई! पद ही ऐसा कि बिजी होना लाजिमी है।

साहेब अचानक इतना सरल हो गए और फोन करने लगे कि हर कार्यकर्ता हैरान है। बड़े प्यार से वह लोगों से बात करते हैं। फोन आता है तो उधर से आवाज आती है कि साहेब बात करेंगे अकेले में चले जाइए। कोई सुन न ले। फिर साहेब मोहब्बत शुरू करते हैं। यह मोहब्बत धीरे धीरे सियासत में बदल जाती है। साहेब अपने मकसद से वाकिफ कराते हैं। कहते हैं कि तोहरे घरे आइब तक चाय भी पी लेब। निश्चित तौर पर साहेब के आने का फर्क पड़ेगा। चुनाव चढ़ेगा। लेकिन मास्टर साहब जिन दगे कारतूसों को लेकर मैदान में घूम रहे हैं वह वोट चढ़ाने के बजाय बिगाड़ने का अधिक काम कर रहे हैं। मास्टर साहब के पास वो टीम नहीं है जो वोटरों को प्रभावित कर सके। इसको भी लेकर कश्मीर वाले साहेब चिंतित हैं। राजपूतों में कोई बड़ा चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है।

जमानियां स्टेट में वहां की महारानी खूब प्रचार कर रही हैं, लेकिन अन्य जगहों पर हालात अच्छे नहीं हैैं। युवराज भी एक दिन आए फिर गायब हो गए। वह अपने बिजनेस को अधिक महत्व दे रहे हैं। उन्हें पता है कि बिजनेस रहेगा तो सियासत भी रहेगी। साहेब को भी दिल बड़ा करके इस तरह के राजपूत नेताओं को अपने पाले में लाना होगा। अरूण सिंह जैसे लीडर भी बैठे हैं। उन्हें राजपूत समाज शेर समझता है, मगर साहेब को ऐसे शेर की कोई जरूरत नहीं है।

अब साहेब को चाहिए कि ऐसे चेहरों को बुलाने के लिए उनके घर जाना चाहिए। युवराज से बात करनी चाहिए। और कहना चाहिए कि युवराज तुम एक महीने बाद ही बिजनेस करना। यहां मेरा सम्मान फंसा है। अब दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान साहेब क्या गुल खिलाते हैं यह मास्टर साहब के लोग अभी से देखो और इंतजार करो की नीति पर काम कर रहे हैं।



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