पारस नाथ राय की जीत में कौन बना बाधक!
0अरूण की सियासी चमक भाजपा में कौन कर रहा फीकी
0प्रत्येक विधानसभा में अरूण सिंह की अच्छी खासी है पैठ
0भाजपा को दिल में बसना चाहते हैं, मगर नहीं हुई ज्वाइनिंग
0पारस के बेटे चाहकर भी अरूण को नहीं बना पाए भाजपाई
अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। मैं अरूण सिंह हूं...। वही अरूण सिंह जब कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की हत्या हुई तो सबसे अगली धार पर खड़ा होकर माफिया मुख्तार के खिलाफ मोर्चा खोला। वर्ष 2014 में मेरे साथ क्या हुआ, इस पर मैं नहीं जाना चाहता।
मगर पारस राय की जीत में कौन लोग बाधक बन रहे हैं। यह अब जानना जरूरी हो गया है। मैं चाहकर भी भाजपा में शामिल नहीं हो पाया और न ही मंच शेयर किया। पारस राय का बेटा चाहकर भी मुझे भाजपा में शामिल नहीं करा पाया। यह कसक अरूण सिंह के धड़कते उस दिल की है जो चाहकर भी जुबान पर नहीं आ पा रही है। तभी तो वह गाजीपुर नहीं बल्कि नीरज शेखर के लिए बलिया में प्रचार कर रहे हैं। जो भी यह किस्सा सुन रहा है वह बीजेपी की इस भेदभाव की सियासत पर हैरान है।
भाजपा प्रत्याशी पारसनाथ राय को टिकट दिलाने में मनोज सिन्हा ने बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने अपने बेटे की पैरवी न करके पारस के लिए मौन सहमति दी थी। अब पारस राय की जीत सुनिश्चित करने के लिए मनोज सिन्हा लहुरीकाशी की कुंज गलियों में पहुंचकर सियासत की बंशी बजा रहे हैं। शिक्षा के पवित्र मंदिर के बाद अब धार्मिक मंदिरों का दर्शन पूजन आजकल उनका चर्चा का विषय बना हुआ है।
संवैधानिक पद पर रहने के बावजूद मनोज सिन्हा का गजब का सियासी प्रेम और लहुरीकाशी के प्रति उनका भाव दिख रहा है। कोई अगर बीमार है या बीमार था तो वहां पर मनोज सिन्हा के काफिले के पहुंचने में देर नहीं लग रही है। बीती रात उन्होंने गंगा आरती करके गाजीपुर में रामराज की कल्पना की। एक तरह से देखा जाए तो ऐसा लग रहा है कि मनोज सिन्हा ही चुनाव लड़ रहे हैं।
पारस तो सिर्फ मनोज सिन्हा के मुखौटा हैं। हर ब्लाक से लेकर हर विधानसभा और हर उस जगह मनोज सिन्हा का कार्यक्रम लग रहा है जिसकी हम आप कल्पना नहीं कर सकते हैं। लेकिन जो लोग भाजपा में नहीं हैं और भाजपा में शामिल होना चाहते हैं उस पर भाजपा ने ध्यान ही नहीं दिया। अब देखिए। छात्र राजनीति आने वाले युवाओं से लेकर गरीबों के दिल में बसने वाले अरूण सिंह बड़े नेता हैं। मगर 2014 में मनेाज सिन्हा से सियासी खटास के कारण अरूण सिंह ने निर्दल चुनाव लड़ने का फैसला किया।
बावजूद इसके उन्होंने अरूण को मनाना जरूरी नहीं समझा। 2019 के लोकसभा चुनाव में मनोज सिन्हा भाजपा के उम्मीदवार थे और बीस हजार करोड़ का विकास उनका बोल रहा था, वह चुनाव हार गए तो राजपूतों को सोशल मीडिया पर खूब गाली मिली। मनोज सिन्हा की हार के लिए राजपूतों को जिम्मेदार ठहराया गया। जबकि राजपूतों ने दिल खोलकर वोट किया था। तभी एक लाख वोट 2014 से 2019 में मनोज सिन्हा अधिक पाए थे।
खैर 2024 के लोकसभा चुनाव में अरूण सिंह की इच्छा थी कि वह भाजपा में शामिल होकर पारस राय के लिए प्रचार करें। इसके लिए पारस राय का बेटा अरूण सिंह के गांव भी पहुंचा। वहां बहुत कुछ बातें भी हुई। लेकिन वह चाहकर भी अरूण सिंह को भाजपा में शामिल नहीं करा पाया। ऐसा बताया गया कि मनोज सिन्हा नहीं चाहते कि अरूण सिंह भाजपा में शामिल हों। अब सवाल उठता है कि गाजीपुर लोकसभा में तीन लाख राजपूत वोटर ऐसे हालात में भाजपा को कैसे वोट करेंगे।
क्या मनोज सिन्हा भाजपा को जीताने आए हैं या कुछ और उनकी मंशा है। यह समझ से परे है। ठीक है, आपके सियासी रिश्ते उस समय मधुर नहीं थे। लेकिन चुनाव के वक्त तो प्रत्याशी या उस दल का नेता अपने विरोधी से भी वोट मांगने और समर्थन लेने जाता है। मगर अरूण सिंह को लेकर मनोज सिन्हा क्यों अड़े हुए हैं। इतने नाराज क्यों हैं। सियासत में दोस्ती और दुश्मनी स्थायी नहीं होती है। मगर मनोज सिन्हा तो इसे दिल से लगा लिए हैं। गृहमंत्री अमित शाह गाजीपुर में रोड शो कर रहे हैैं।
ऐसा कहा जाता है कि जहां पर पीएम सभा करके चले जाते हैं वहां अमित शाह नहीं जाते हैं। जातिगत आकड़े में गाजीपुर की सीट पूरी तरह से उलझी हुई है। भाजपा अरूण सिंह को शामिल नहीं कराकर एक तरह से राजपूत वोटरों की नाराजगी मोल ले बैठी है। अगर समय रहते भाजपा ने यह गलती नहीं सुधारी और हर जज्बात मनोज सिन्हा के ही दिल से लिए गए तो 2022 में जिस तरह से मंदिर घूमने के बाद भी भाजपा हारी थी, कहीं यह परिणाम रिपीट न हो जाए।
जब अरूण सिंह से सवाल दागा गया तो उन्होंने कहा कि हम भाजपा के सभी नेताओं का सम्मान करते हैं। बाबा के बुल्डोजर ने माफियाओं की कमर तोड़ दी।
और भी हैं नाराज
ग़ाज़ीपुर। अरूण सिंह के अलावा रामतेज पांडेय, पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष ब्रिजेन्द्र राय भी मनोज सिन्हा के कोप के भाजन बने हैं। यही नहीं पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह से भी भाजपा ने संपर्क नहीं साधा। यह भी चर्चा हो रही है।