अरूण सिंह को भाजपाई बना पाएंगे चंचल!

0तीसरी बार सीएम योगी से मिला चुके हैं एमएलसी
02014 के चुनाव में भाजपा से अरूण ने दिया था इस्तीफा
0कई कोशिशों के बावजूद भाजपा में नहीं मिल पा रहा ठौर
0क्या मनोज सिन्हा की सहमति से ही अरूण की होगी वापसी
अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। जिले के जानदार, शानदार और आकर्षक के साथ साथ युवा दिलों की धड़कन बन चुके भाजपा एमएलसी विशाल सिंह चंचल क्या अरूण सिंह की भाजपा में वापसी करा पाएंगे। यह सवाल हर तरफ तब तेजी से होने लगा, जब तीसरी बार बीते बुधवार को चंचल ने अरूण सिंह की सीएम योगी से मुलाकात कराई। इस दौरान करीब 15 मिनट तक कई बातें हुईं, मगर यह ठोस आश्वासन अभी तक नहीं मिल पाया कि अरूण सिंह कब भाजपाई बनेंगे। इसके पीछे के कारण पर दिलचस्प चर्चा करते हुए सियासत के जानकारों का कहना है कि जब तक मनोज सिन्हा नहीं चाहेंगे तब तक अरूण सिंह की वापसी पार्टी में संभव नहीं है। क्योंकि लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कोशिश की थी, मगर सफलता नहीं मिली।
जिला सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन रहे अरूण सिंह के सियासी पन्नों को पलटा जाए तो वह छात्र राजनीति से सीधे कांग्रेस की सियासत शुरू किए थे। जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और प्रदेश अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे, तब वह भाजपाई बने। यहां के मठाधीशों ने अरूण सिंह को चेयरमैनी का चुनाव हराने की पूरी कोशिश की, मगर तत्कालीन सीएम रहे स्व. कल्याण सिंह ने अरूण के साहस से खासे प्रभावित हुए। हालांकि मौजूदा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का हमेशा अरूण के सिर पर हाथ रहा।
सदर और जमानियां से कई बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके अरूण सिंह के किस्मत में शायद जनप्रतिनिधि बनना नहीं लिखा था, तभी तो वह कई दफा मामूली अंतर से चुनाव जीतकर भी हार गए। विधायक स्व. कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार से दो दो हाथ करने वाले अरूण सिंह 2012 का विधानसभा का चुनाव हारने के बाद एक तरह से टूट चुके थे। तभी तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें भरोसा दिया कि तोहके गाजीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ना है। 2004 का लोकसभा चुनाव हारने वाले मनोज सिन्हा की राजनीति एकदम से खत्म हो चुकी थी। वह गाजीपुर आना कम कर दिए थे।
न्यौता हकारी भी खास लोगों का ही करते थे। कैंट के पास एक होटल में बैठकर दिन काटना और गुजरात के गांधीनगर जाकर वहां के मुख्यमंत्री से मिलना ही उनके जीवन का हिस्सा बन चुका था। इधर जब राजनाथ सिंह ने अरूण को कहा कि चुनाव लड़ना है तो उन्होंने सीधे तौर पर मना कर दिया। कहा कि 2012 का चुनाव हारा हूं... इसलिए लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ूंगा। हालांकि दिल्ली मुलाकात के दौरान भी राजनाथ सिंह ने यही बात अरूण सिंह से दोबारा दोहराई थी। तब उन्होंने कहा कि मनोज जी चुनाव लड़ेंगे नहीं क्या। राजनाथ सिंह ने भी ना में सिर हिलाया। फिर भी अरूण सिंह को भरोसा नहीं हुआ और उन्होंने मनोज सिन्हा से मिलकर इस पर बात की।
सिन्हा ने चुनाव लड़ने से किया था इंकार
उस दौरान मनोज सिन्हा के अरूण सिंह से मधुर रिश्ते थे। मनोज सिन्हा ने साफ तौर पर कहा कि मैं कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा, आप लड़इिए...। जहां कहेंगे मैं भी चलकर कह दूंगा। मनोज सिन्हा से आश्वासन मिलने के बाद अरूण सिंह ने गहमर से चुनाव प्रचार का शंखनाद कर दिया। यह वक्त था 2013 का। उन्होंने पूरे जिले में टीम सजा दी। चूंकि कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में माहौल था। भाजपा के पक्ष में पूरा देश एकजुट हो चुका था। इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही पीएम फेस बने तो मनोज सिन्हा के अंदर चुनाव लड़ने की इच्छा एक बार फिर से हिलोरे मारने लगी। हालांकि अंतिम समय तक मनोज सिन्हा इंकार करते रहे कि वह 2014 का चुनाव नहीं लड़ेंगे।
2014 में दोनों की थी सियासी हैसियत एक जैसी
अरूण सिंह को लेकर ट्रेन से दिल्ली भी गए। रास्ते भर यह बात होती रही। लेकिन एैन वक्त पर अरूण सिंह की जगह मनोज सिन्हा को लोकसभा का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। जिस समय भाजपा गाजीपुर लोकसभा के उम्मीदवार का टिकट घोषित कर रही थी, उस समय सियासी हैसियत मनोज सिन्हा और अरूण सिंह की एक जैसी थी, लेकिन यहीं से मनोज सिन्हा का सियासी भाग्य चमक उठा और अरूण सिंह की राजनीति की बत्ती गुल होना शुरू हो गई।
टिकट नहीं मिलने पर बौखला गए थे अरूण सिंह
सिन्हा को टिकट मिलते ही अरूण सिंह बौखला गए। उन्होंने ऐलान कर दिया कि वह निर्दल लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। उनको मनाने के लिए जमानियां में मंच से राजनाथ सिंह ने मार्मिक तौर पर अपील भी किया। बोले, अरूण तुम आ जाओ। लेकिन अरूण सिंह को दर्द था। धोखे से नफरत थी। सियासी चालबाजी का अंदाजा नहीं था। इसलिए वह सियासी तौर पर बिफर पड़े। फिर भी हिम्मत नहीं हारे और पूरी ताकत से चुनाव लड़े।
काश! शाह की हैसियत जान गए होते अरूण सिंह
लोकसभा चुनाव के दौरान तब के यूपी प्रभारी रहे मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह ने भी अरूण सिंह को चुनाव न लड़ने का अनुरोध किया था। कहा था कि सरकार बनने पर कहीं समायोजित किया जाएगा। मगर अरूण सिंह को क्या मालूम था कि साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति उन्हें चुनाव लड़ने से मना कर रहा है। वह कुछ ही दिनों में भारत की दूसरी सबसे बड़ी ताकत बनने जा रहा है। चुनाव परिणाम आए तो मनोज सिन्हा का भाग्य साथ दे चुका था। वह करीब 32 हजार वोटों से चुनाव जीतकर तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुए।
सिन्हा नहीं जानते थे अचानक बढ़ेगी हैसियत
मनोज सिन्हा को भी नहीं पता था कि वह पीएम मोदी और अमित शाह के इतने करीब हो जाएंगे कि पूरे देश में उनका नाम हो जाएगा। हुआ भी वही। मनोज सिन्हा केंद्रीय मंत्री बन चुके थे। पावर बढ़ चुकी थी। वहीं अरूण सिंह की राजनीति धीरे धीरे ढलान पर थी। 2018 में अरूण सिंह एक हत्या के मामले में जेल भी जा चुके थे। इस तरह से धीरे धीरे मनोज सिन्हा की ताकत पूरे भारत में बढ़ने लगी। और आज वह हार कर भी जम्मू एवं कश्मीर के एलजी हैं। यही सियासी रार अरूण सिंह को भाजपा में आने से रोक रही है। वह चाहकर भी भाजपा में नहीं आ पा रहे हैं। इसको लेकर भाजपा एमएलसी विशाल सिंह चंचल भी पर्दे के पीछे रणनीति बनाए, मगर अभी तक इस तरह की कोई सुखद खबर नहीं आई। जिससे यह कहा जाए कि अरूण सिंह भाजपाई बन चुके हैं। ऐसा कहा जाता है कि गाजीपुर के सियासी मामले में यूपी भाजपा का कोई भी नेता मनोज सिन्हा की सहमति के बगैर कोई फैसला लेनी की हैसियत में आज तक नहीं हुआ। तब यह देखना रोचक हो जाएगा कि चंचल और अरूण सिंह सियासी तौर पर कितना भाजपा में मजबूत होंगे, यह आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले स्पष्ट हो जाएगा।
अरूण की ही काट में चंचल को बनवाया था भाजपाई
गाजीपुर। जब पूरे देश में गाजीपुर के सांसद एवं केंद्रीय रेल राज्यमंत्री रहे मनोज सिन्हा की ताकत बढ़ने लगी तब उन्हंे गाजीपुर में किसी राजपूत नेता की कमी खलने लगी। वर्ष 2016 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से बगावत करके वाराणसी का युवा कारोबारी एमएलसी बन चुका था। नाम था विशाल सिंह चंचल। नाम के अनुसार काम करने वाले चंचल को एमएलसी का चुनाव जीतते यह आभास हो चुका था कि वर्ष 2017 में यूपी में भाजपा की सरकार बनने वाली है। उस समय यूपी के सियासी परिदृश्य में सीएम योगी का कहीं कोई नाम नहीं था। वह गोरखपुर तक ही सीमित थे। गाजीपुर से सांसद मनोज सिन्हा थे। केंद्र में मंत्री थे। पावर था। पीएम मोदी के करीबी का ठप्पा लग चुका था। चंचल ने मनोज सिन्हा की अंगुली पकड़कर भाजपा ज्वाइन किया। यानि इस तरह से समझा जाए तो उनके इशारे पर भाजपा में शामिल हुए। और मनोज सिन्हा के साथ चलने लगे।
प्रधानमंत्री जब आए तो चंचल भी मंच पर दिखते थे। मनोज सिन्हा की सोच थी कि अरूण सिंह के विरूद्ध विकल्प के तौर पर चंचल को आगे किया जाए। लेकिन जैसे ही यूपी के सीएम बाबा बने तो चंचल ने भी पलटी मार दी। हुआ यूं कि यूपी के सीएम के तौर पर मनोज सिन्हा का नाम लगभग फाइनल था। कहीं भी बाबा नहीं थे। मगर आरएसएस के एक फैसले ने बाबा को मठ से सीएम की कुर्सी तक पहुंचा दिया। बाबा के सीएम बनते ही चंचल ने जोरदार जुगाड़ खोजा और बाबा के करीब पहुंचने लगे। उसका कारण था कि बाबा का टेस्ट चंचल पढ़ चुके थे। ऐसी चर्चा रही कि मनोज सिन्हा को बाबा पसंद नहीं करते हैं। इसका भी लाभ चंचल को मिला। कई ऐसे मौके आए जब सीधे तौर पर चंचल ने मनोज सिन्हा के खिलाफ दिखाई दिए। उसका जीता जागता उदहारण जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में प्रत्याशी घोषित करने को लेकर था। मनोज सिन्हा चाहते थे कि विजय की पत्नी प्रत्याशी बने, जबकि चंचल ने अपने साले की पत्नी को बाबा से अनुरोध करके प्रत्याशी बनवा दिया। वह चेयरमैन भी हैं। इसके बाद जीजा साले के सियासी रिश्ते काफी हद तक खराब भी हो चुके थे। जिला पंचायत की बत्ती गुल करने का कई बार प्रयास किया, मगर साला चुपके से बत्ती जलाकर हीरो हो गया। खैर आज सियासी मजबूरियों के कारण चंचल और अरूण सिंह करीब आ गए हैं, मगर सियासी मजबूरी कितने दिनों तक रहेगी, कहना मुश्किल है। वैसे बाबा ने साफ कहा है कि चंचल को छोड़ना नहीं है। वैसे चंचल के लोग गाजीपुर से धारा 370 हटाने के लिए अभियान चला रहे हैं। रामतेज पांडेय के बाद भाजपा के युवा नेता एवं चंचल के करीबी शिवप्रताप सिंह छोटू ने भी धारा 370 हटाने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाया था। यह तब हुआ था जब सिन्हा के करीबी ओमप्रकाश राय जिलाध्यक्ष घोषित हो गए। हालांकि मनोज सिन्हा गाजीपुर के मामले में सब पर भारी हैं।



