आखिर अफजाल मनोज सिन्हा को क्यों दे रहे चुनौती

02004 और 2019 में सिन्हा को हरा चुके हैं अफजाल

0अफजाल के मुकाबले भाजपा नहीं उतार पा रही प्रत्याशी

0मनोज सिन्हा मैदान में नहीं आए तो कौन होगा दावेदार

0भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ता मनोज की कर रहे हैं मांग

0अभिनव के अलावा सुशील, विजय मिश्रा की भी है चर्चा

अजीत केआर सिंहगाजीपुर। लोकसभा चुनाव में सपा के घोषित प्रत्याशी मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी अभी से जम्मू एवं कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा को ललकार रहे हैं। वह चुनौती दे रहे हैं कि मनोज सिन्हा चुनाव भी लड़ लेंगे तो मतगणना में मेरा मुकाबला नहीं कर पाएंगे।

आखिर सवाल उठता है कि अंसारियों को मिट्टी में मिलाने के बाद अफजाल किस वजह से मनोज सिन्हा को चुनौती पर चुनौती दिए जा रहे हैं। हालांकि अभी तक भाजपा ने गाजीपुर से किसी भी चेहरे को फाइनल नहीं किया है। वैसे भाजपा कार्यकर्ता सर्वाधिक डिमांड मनोज सिन्हा की कर रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि गाजीपुर में भाजपा के पक्ष में हवा चल रही है। अगर मनोज सिन्हा आए तो अफजाल की सियासी तौर पर बोलती बंद करके घर वापस भेज देंगे।

वर्ष 2004 में दो लाख से अधिक वोटों से मनोज सिन्हा को पटखनी देने वाले अफजाल ने अपने जीवनकाल में कुल दस चुनाव लड़ा है। जिसमें सात चुनाव जीते हैं और तीन हारे हैं। पहला चुनाव उन्होंने मुहम्मदाबाद विधानसभा से 2002 में स्व. कृष्णानंद राय से हारा था। फिर 2004 में मनोज सिन्हा को हराकर सांसद बन गए। मगर 2009 में सपा के प्रत्याशी रहे राधेमोहन सिंह ने एक लाख से अधिक वोटों से अफजाल को हराया था। तीसरा चुनाव अफजाल 2014 में बलिया लोकसभा से नीरज शेखर के हाथों पराजित हुए थे।

जबकि मनोज सिन्हा के सियासी सफरनामे पर गौर किया जाए तो उन्होंने भी अपने जीवनकाल में कुल दस चुनाव लड़े। जिसमें तीन चुनाव में उन्हें विजय श्री हासिल हुई। 2004 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में जब अफजाल अंसारी ने केंद्रीय मंत्री रहे मनोज सिन्हा को पटखनी दी थी तो इसकी सियासी आवाज दिल्ली के सत्ता के गलियारों तक सुनाई दी थी। तब यह चर्चा थी कि माफिया मुख्तार के भाई सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी रहे अफजाल अंसारी ने विकास पुरूष को धराशायी कर दिया। हालांकि हारने के बाद मनोज सिन्हा का कद घटने के बजाय अंतर्रराष्ट्रीय स्तर बढ़ गया।

भाजपा ने उन्हें जम्मू एवं कश्मीर का एलजी बना दिया। कश्मीर के एलजी के नाते मनोज सिन्हा को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिल गई और प्रधानमंत्री के साथ ही गृहमंत्री से हमेशा मिलने का अवसर प्रदान हो गया। आज भी गाजीपुर भाजपा में मनोज सिन्हा की तूती बोलती है। अभी तक भाजपा ने किसी भी नेता को यहां से प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। मनोज सिन्हा को एलजी के नाते भाजपा उतारने से कतरा रही है।

मनोज सिन्हा का सियासी कद घटे नहीं इसलिए किसी दूसरे चेहरे पर दाव लगाने की सोच रही है। मनोज सिन्हा की दिली तमन्ना है कि उनका परिवार ही चुनाव लड़े। उनके बेटे अभिनव सिन्हा अपने पिता की सियासी बगिया को सींच रहे हैं। उन्हें भाजपा का एक तबका अगले सांसद के तौर पर देख रहा है। अभिनव चूंकि राजनीति में नए हैं और जो सपा के प्रत्याशी हैं अफजाल अंसारी वह मजे हुए खिलाड़ी हैं। इस नाते भाजपा सोच रही है कि आखिर अफजाल के मुकाबले किस पर दांव लगाया जाए।

इस सिलसिले में कई बार सिन्हा गृहमंत्री से भी मिल चुके हैं।

एक दर्जन नाम और हैं चर्चा में

सिन्हा परिवार मैदान में किसी कारण वश नहीं आता है तो बृजेश सिंह के विधायक भतीजे सुशील सिंह का भी नाम चल रहा है। हर स्तर से लड़ने में सुशील सिंह सक्षम भी है। इनके अलावा पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह, गाजीपुर से एमएलसी विशाल सिंह चंचल, पूर्व मंत्री विजय मिश्रा, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष बृजेंद्र राय, जिला पंचायत अध्यक्ष सपना सिंह, पूर्व विधायक सुनीता सिंह, सरोज कुशवाहा प्रो. शोभनाथ यादव, पूर्व ब्लाक प्रमुख संतोष यादव के नामों की खूब चर्चा हो रही है।

अरुण सिंह ने साधा था निशाना

पिछले दिनों लंका मैदान में पूर्व चेयरमैन जिला सहकारी बैंक अरूण सिंह ने अपनी सियासी ताकत दिखाने के लिए समर्थकों को बुलाया था। उन्होंने सकुनी शब्द का प्रयोग किया था। यह सकुनी शब्द मनोज सिन्हा एक खास को लेकर था। चूंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में अरूण सिंह तैयारी कर रहे थे। अचानक मनोज सिन्हा को मैदान में उतार दिया गया था। इसे लेकर अरूण सिंह नाराज थे और निर्दल चुनाव लड़कर कड़ा विरोध जताया था।

फिलहाल अफजाल मजबूत

मौजूदा हालात में सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी यह जानते हैं कि सियासी तौर भाजपा की कमजोर नस कौन सी है। सपा के पांच विधायक निश्चित तौर भाजपा के लिए बड़ी परेशानी हैं। यही वजह है कि बहुमत के आधार पर अफजाल फिलहाल सियासी सिनेरियो में सबसे आगे बताए जा रहे हैं।



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