बायोफिजिक्स : जैव भौतिकी के जरिए बनाए ठोस कैरियर

नई दिल्ली। वास्तव में जैव भौतिकी यानी बायोफिजिक्स, बायोलॉजिकल साइंस एवं फिजिकल साइंस की एक परिसीमा है।

इसमें मुख्यत: भौतिक सिद्धांतों के आधार पर जैव क्रियाओं जैसे-इंद्रियजनित ज्ञान, तंत्रिका-तंत्र के क्रियाकलापों का अध्ययन, देखने-सुनने की क्रिया आदि की व्याख्या का अध्ययन किया जाता है। इसमें जैव व्यवस्था से संबंधित सभी विधियां अंतर्निहित होती हैं। सन 1982 में कार्ल पीयरसन ने अपनी पुस्तक द ग्रामर ऑफ साइंस में सर्वप्रथम बायोफिजिक्स शब्द का इस्तेमाल किया था।

यह मुख्यत: विज्ञान के विभिन्न विषयों में पारस्परिक संबंध रखने वाला विषय है। जैसा कि नाम से स्पष्ट संकेत मिलता हैै कि यह सिर्फ बायोलॉजी और फिजिक्स से संबंधित है, लेकिन वास्तव में यह और भी कई संकायों जैसे गणित, सांख्यिकी, कंप्यूटर साइंस, केमिस्ट्री एवं बायोकेमिस्ट्री आदि से जु़डा हुआ है। सभी शारीरिक क्रियाओं जैसे-न्यूरल संचार, मांसपेशियों की क्रियाएं, देखने, सुनने, स्पर्श करने पर महसूस करना आदि फिजिक्स के नियमों मैकेनिक्स, हाइड्रो डायनामिक्स, ऑप्टिक्स, इलेक्ट्रोडायनामिक्स तथा थमोर्डायनामिक्स आदि पर आधारित हैं। बायोफिजिक्स में फिजिक्स के कुछ मूलभूत सिद्धांतों को बताया जाता है जिसका बायोलॉजी से सीधा संबंध होता है।

अभियांत्रिकी डिजाइन की सूचनाओं के आधार पर लियोनार्डो डा विंसी (1452-1519) ने सर्वप्रथम चिड़ियों के उ़डने के यांत्रिक सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जो अब बायोनिक्स के नाम से जाना जाता है। यह विदित है कि जे.आर. मेयर के चिकित्सीय प्रेक्षण ने फर्स्ट लॉ ऑफ थमोर्डायनामिक्स के अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।



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