शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर वर्ष मेले

नंदगंज थाना फूंककर तिरंगा फहराना चाहते थे जुनैद आलम

0अंग्रेजों ने नंदगंज थाने में जुनैद आलम को मारी थी गोली

018 अगस्त को थाना फूंककर निकली थी जुनैद की टीम

गाजीपुर। आज ही के दिन 18 अगस्त 1942 को नंदगंज थाना फूंककर गाजीपुर में तिरंगा फहराने निकली शहीद जुनैद आलम की टीम को अंग्रेजों ने गोलियों से भून डाला था। अगर आंधी तुफान उस समय नहीं आता तो शायद गाजीपुर में यह आजादी के दिवाने तिरंगा फहरा दिए होते, मगर अंग्रेजों की गोलियों से वीरगति को प्राप्त हो गए।

गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में नन्दगंज के मुश्ताक अहमद, शहीद जुनैद आलम, बाबु भोला सिंह, रामधारी पहलवान, डोमा लुहार ने जो वीरता की गाथा लिखी है वो इतिहास के पन्नों में अमर हो गई। आज उसको फिर से याद करते हैं शाहिद जुनेद आलम के भाई मुस्ताक अहमद। वह अपनी डायरी में लिखते हैं कि अगर उस दिन आंधी और तूफान नहीं आया होता तो हम सभी क्रांतिकारी नंदगंज थाने पर झंडा फहराकर और रेलवे स्टेशन को जलाकर गाजीपुर की तरफ कूंच कर दिए होते। तब तक जोरदार आंधी ने हमारे रास्ते को रोक दिया।

नहीं तो हम लोग सैकड़ों क्रांतिकारियों के साथ गाज़ीपुर पहुंच कर मुख्यालय पर कब्जा कर गाजीपुर को भी आजाद करवा दिए होते। आंधी और बारिश ने हम लोगों को इधर उधर कर दिया था। समय बर्बाद होने से अंग्रेज अफसर अपनी बलोच सेना के साथ हम लोगों को नंदगंज में घेर लिया और फायरिंग करके जुनेद आलम और विश्वनाथ समेत कई लोगों को शहीद कर दिया। सिर्फ दो लोगों का नाम ही दस्तावेजों में मिलता है।

बाकी लोगों का जिक्र अंग्रेज हुकूमत ने छिपा दिया था। काफी बड़ी तादाद में लोग घायल भी हुए थे। मरने वालों की भी बहुत बड़ी तादाद थी। इस घटना का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विमोचित भारत सरकार की पुस्तक डिक्शनरी ऑफ मार्टायरस वॉल्यूम 2 पेज नंबर 347 में जुनेद आलम को नंदगंज थाने और रेलवे स्टेशन जलाते समय गोली मारने का जिक्र दर्ज है। मुश्ताक अहमद के पौत्र अहमर जमाल कहते हैं कि शहीदों को श्रद्धांजलि देने का दिन है। सभी महान शहीदों और घायल क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जिनके ऊपर अंग्रेजों ने ज़ुल्म की इन्तेहा कर दिया था।



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