करईल में 2027 की पिच तैयार कर रहे आनंद राय

0पूर्व विधायक पुत्र पीयूष को आनंद दे रहे हैं चुनौती

0भांवरकोल ही नहीं पूरे मुहम्मदाबाद में टीम है तैयार

0आनंद की जिद्द से पीयूष को नहीं मिला था टिकट

0कृष्णानंद राय का असली वारिस मानते हैं आनंद राय

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। स्व. कृष्णानंद राय के भतीजे और भांवरकोल ब्लाक प्रमुख पति आनंद राय मुन्ना इस समय पूरे सियासी फार्म में है। वह 2027 की सियासी पिच मुहम्मदाबाद विधानसभा के करईल इलाके में तैयार कर रहे हैं।

यही कारण है कि आज कल वह भाजपा के जिला मुख्यालय पर होने वाले सभी कार्यक्रमों में दिखाई दे रहे हैं। मुहम्मदाबाद विधानसभा से जुड़े अफसर और कर्मचारी आनंद राय मुन्ना की बात बड़े ही गंभीरता से मान लेते हैं। आनंद राय की लोकप्रियता पूर्व विधायक अलका राय के पुत्र पीयूष राय के लिए सियासी डगर पर भारी पड़ने लगी है।

आनंद राय मुन्ना अपने आपको कृष्णानंद राय का असली वारिस मानते हैं। उनका साफ कहना है कि चाचा के साथ हमीं सीना तान के उस समय भी माफियाओं के खिलाफ खड़े रहते थे और भी लड़ रहे हैं। जो लोग आज मुहम्मदाबाद में टिकट के दावेदार अपने आपको बता रहे हैं वह उस समय कहां थे। मुहम्मदाबाद का करईल का जर्रा जर्रा चाचा और हमारी मेहनत से सींचा हुआ हरभरा इलाका है।

करईल का बच्चा बच्चा मुझे प्यार करता है। यही वजह रही कि भांवरकोल से मुझे ब्लाक प्रमुख निर्विरोध चुना गया। खैर आनंद राय मुन्ना के इस दावे के विपरीत कृष्णानंद राय के बेटे पीयूष राय भी वारिस बताते हैं। चूंकि वह कृष्णानंद राय के बेटे हैं और उसी हैसियत से मेहनत करते हैं और अपनी पूर्व विधायक मां का सभी कार्य देखते हैं।

विधायकी के कार्यकाल के दौरान पीयूष ही पूरे विधानसभा के सभी कार्य को लीड करते थे। सीएम से भी कई बार मिल चुके हैं। वह 2022 में भाजपा में दावेदार थे। अलका राय की इच्छा थी कि पीयूष को भाजपा प्रत्याशी बनाएं। लेकिन आनंद राय मुन्ना के विरोध के कारण सीधे तौर पर भाजपा के नेताओं ने पीयूष को प्रत्याशी बनाने से इंकार कर दिया। चूंकि मुहम्मदाबाद विधानसभा में पहली बार 1996 में कृष्णानंद राय को मनोज सिन्हा ही लांच किए थे।

उस समय भाजपा में विजय शंकर राय मास्टर साहब ही मजबूत दावेदार हुआ करते थे। पहली बार भले ही कृष्णानंद राय चुनाव हार गए, मगर 2002 के विधानसभा चुनाव जब हुए तो उन्होंने सियासत के विशाल बरगद और मौजूदा सांसद अफजाल अंसारी को जोरदार तरीके पटक दिया था। यानि अफजाल को हराकर पहली बार 2002 में कृष्णानंद राय विधायक बने। 2005 में उनकी हत्या हुई और इल्जाम अंसारियों पर लगा, मगर सीबीआई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। दो बार यहां से कृष्णानंद राय की पत्नी विधायक बनीं। जब 2006 में उपचुनाव हुए तो अलका राय विधायक निर्वाचित हुए थे।

2007 में वह हार गई। इसके बाद सीधे 2017 में चुनाव लड़ी तो वह विधायक बनीं। तब उनका कार्य कुछ समय तक आनंद राय ने ही देखा था। अचानक उनकी सोच बदली और उनके बेटे पीयूष ने सब कुछ संभाल लिया। यह बात आनंद को खटकी। वह तब तक शांत थे जब तक भांवरकोल से अपनी पत्नी को ब्लाक प्रमुख नहीं निर्वाचित करा लिए। इसके बाद दोनों चचेरे भाइयों में सियासत को लेकर बराबरी होने लगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में दोनों भाई पूरे फार्म में थे। लेकिन भाजपा ने अलका राय को टिकट दिया और वह मन्नू अंसारी से चुनाव हार गईं। ऐसा कहा जाता है कि दोनों भाइयों के आपसी झगड़े के कारण ही मतदाताओं में काफी विरोधाभास था।

जीत की खास रणनीति नहीं बन पाई। और जब नतीजा आया तो यह सीट जीतकर भी भाजपा हार गई। इस झगड़े को भाजपा कहीं न कहीं समझ नहीं पाई। वैसे आनंद राय काफी मिलनसार हैं, उन्हें मुहम्मदाबाद में सेकेंड कृष्णानंद राय कहा जाता है। उनके भीतर कृष्णानंद राय का प्रतिबिंब दिखाई देता है। मौजूदा समय में वह 2027 की पिच तैयार करके पार्टी में दावेदारी पेश कर रहे हैं। वह पूरे इलाके में चलते हैं, लोगों की समस्याएं सुनते हैं। अफसरों को फोन करते हैं। दोनों भाइयों के इस झगड़े का अगर कोई हल नहीं निकला तो भाजपा तीसरे विकल्प पर विचार कर सकती है।

चूंकि मनोज सिन्हा के बेटे अभिनव सिन्हा गाजीपुर लोकसभा से दावेदार थे, मगर मनोज सिन्हा ने ही कदम पीछे खिंच लिया। ऐसा कहा जा रहा है कि दोनों के झगड़े को देखते हुए अगले चुनाव में मनोज सिन्हा अपने बेटे को मुहम्मदाबाद से उम्मीदवार बनवा कर सभी को चौंका सकते हैं।



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