सियासी पिच पर जीजा साला कब होंगे एकजुट

0राधेमोहन से लड़ने के लिए सैदपुर का लेना पड़ेगा साथ

0साले से जीजा को सियासत में पंगा लेना पड़ गया महंगा

0बेवजह साले पर पावर दिखाने से जीजा को हुआ नुकसान

0जीजा के पूर्व कारिंदे ने ही पूरे महल में लगाई थी आग

अजीत केआर सिंह, गाजीपुर। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद मौसम था कड़ाके की ठंड का। लहुरीकाशी का सियासी पारा कड़ाके की ठंड में भी गरम हो चुका था। केंद्र बिन्दु में था सैदपुर का कौशिक परिवार। पहली बार सैदपुर का कौशिक घराना विधानसभा चुनाव लड़ रहा था, मगर उस पर शनि और राहु की काली छाया थी। जैसे ही जीजा के बड़े साले डाक्टर ने चुनाव लड़ने का जंगीपुर से ऐलान क्या किया, यह बात जीजा को नागवार गुजरी। और यहीं से चली सियासी हवा की तल्खी रह रहकर पुरानी यादों को ताज करके जख्मों को कुरेदने की कोशिश करती रही। मगर करमपुर में राधेमोहन के किये गए करम से निकलने वाले परिणाम से पहले अब जीजा साले को सियासी पिच पर एकजुटता का परिचय देना पड़ेगा। तभी राधेमोहन के अश्वमेघ के घोड़े को दोनों रोक पाएंगे।

वर्ष 2016 में नहीं थी कोई पहचान
जीजा ने पहला चुनाव जब वर्ष 2016 में साइकिल से कूद कर निर्दल ही लड़ा था तो उस समय उनके साथ सैदपुर का कौशिक घराना यानि उनकी ससुराल और दोनों सालों के साथ बड़े और छोटे श्वसुर ने जी-तोड़ मेहनत की थी। पहले चुनाव का जब परिणाम आया तो जिला प्रशासन और साइकिल की सरकार के विरोध के बावजूद जीजा मामूली वोटों से चुनाव जीतने में सफल रहे। उस समय जीजा को बहुत कम ही लोग जानते थे। सियासत में संघर्ष का दौर था। सियासी पहचान सिर्फ चाचा के भतीजे के रूप में ही थी। सैदपुर और महुआबाग और साले की गाजीपुर वाली टीम पूरी ताकत लगाकर दिन रात मेहनत करके चुनाव में लगी थी।

भाजपा में कश्मीर वाले साहेब थे जीजा के पहले गुरू
इस दौरान चुनाव के बाद दिसंबर में जीजा की किस्मत पलटी और यूपी में साइकिल वालों का माहौल खराब हो गया। तब केंद्र में कश्मीर वाले साहेब रेल पर सवार थे। अचानक जीजा जी रेल वाले साहेब की रेल पर सवार होकर प्रदेश की राजधानी पहुंचकर भगवाधारी हो गए। कुछ दिनों तक वह कश्मीर वाले साहेब को अपना सियासी गुरू मानते रहे।

फिर जीजा पलटी मारे, अब गुरू हैं बाबा
अचानक यूपी में भाजपा की सरकार बनी और गोरखपुर वाले बाबा सीएम बने तो जीजा का भी मन डोल गया। और उन्होंने तुरंत पाला बदला और महराज जी के दरबार में पहुंचने के लिए छटपटाने लगे। जखनियां वाले श्रीराम सिंह का साथ मिला और गोरखपुर के कुछ बाबा के खास की बदौलत वह महराज जी के दरबार में पहुंच गए। जैसे ही वहां पहुंचे तो अंगद की तरह पैर जमा लिए और टस से मस नहीं हुए। उन्होंने कश्मीर वाले साहेब को भूलना ही उचित समझा। इधर कश्मीर वाले साहेब भी बाबा की कुर्सी पर बैठने के लिए बेताब थे, मगर बैठे बाबा। खैर यह बात महराज जी को भी नागवार गुजरी। उन्होंने लहुरीकाशी में कश्मीर वाले साहेब की सोच से विपरीत वाले नेता की तलाश की तो जीजा फिट बैठे। जीजा भी मौका देखकर रंग बदले और कश्मीर वाले साहेब को चुनौती देने की खूब कोशिश की, मगर हर जगह नाकाम रहे। हालांकि साहेब अपनी करनी से ही दोनों चुनाव में मात खाए।

हेलीकॉप्टर में घूमने से बदला मिजाज
इधर जीजा महराज जी के हेलीकाप्टर में घूमने लगे तो उनका हाव भाव भी बदल गया, वह अपने आपको पावरफूल भी मानने लगे। उनका पावर तब और बढ़ गया जब महराज जी खाकी की फौज लगा दिए। फिर क्या था पहले साले की पत्नी को चेयरमैन बनवाए। कई ब्लाक प्रमुख अपने मनपसंद का बनवा दिए। हर जगह वाहवाही होने लगी। हर लोग जीजा के पावर को महसूस करने लगे। जय जयकार होने लगी। धीरे धीरे राबिन हुड की छवि होने लगी। अचानक जीजा का कारिंदा अपने आपको हीरो बनने के लिए उनका कान भरने लगा। साले की टीम के महुआबाग के जीजा के जी भैया वाले पुराने साथी के पीडब्ल्यूडी में कमाई करने की बात पहुंच गई। यह बात सुनकर जीजा भड़क गए। पहले उन्होंने अपने साले को मना किया। साला नहीं माना तो जीजा नाराज हो गए।

डाक्टर के चुनाव लड़ने पर पहुंचाई आर्थिक चोट
जंगीपुर में बड़े साले डाक्टर के चुनाव लड़ने से जीजा जी पहले ही नाराज थे, उन्होंने सबसे पहले सैदपुर वालों के आर्थिक साम्राज्य पर चोट मारी और कौशिक परिवार के पुराने सहयोगी के बेटे को 12 दुकान जबरिया दिला दी। वजह यह थी कि यह परिवार इनके नाम से ही दुकान मधुशाला की ले रखा था। राजन ने जीजा साले के विवाद में हर माह करीब तीस लाख कमाया। यह कमाई अब तक करोड़ों में पहुंच रही है। इसके बाद सैदपुर परिवार और जीजा के बीच तलवारें खिंच गई।

गुस्साए जीजा ने सरहज की कराई थी जांच
जीजा जी अपने सरहज की पंचायत की जांच पर जांच कराए। बड़े अफसरों की चिट्ठी आई। डीएम साहिबा ने जांच के लिए कमेटी बनाई। जीजा बत्ती बुझाने के चक्कर में थे। जब उनका लेटर मार्केट में आ गया तो खुद जीजा जी की चर्चा सत्ता के गलियारे में होने लगी। हर लोगों से जीजा चर्चा करने लगे। लेकिन साले और सरहज के सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। इससे जो लोग साले को नहीं जानते थे, वह लोग भी जान गए। साला पूरी मस्ती से घूम रहा है, जांच पर आंच नहीं आई, लेकिन जांच का नतीजा किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा। इतना जरूर हुआ कि जीजा की सियासी गंभीरता का अंदाजा भी लहुरीकाशी को पता चल गया।

मधुशाला हड़पने वाले प्रमुख जी की लगी क्लास
खैर साला एक दिन मधुशाला हड़पने वाले प्रमुख जी को डाक बंगले में खूब खरीखोटी सुनाई और चैलेंज किया साले का बकाया जीजा के पास पहुंच गया। इस दौरान हमारे संवाददाता ने साले का गुस्सा देखा प्रमुख जी पर। गजबे साला झडिया रहा था। हिसाब किताब अब धीरे धीरे जीजा साले का चुकता होता नजर आ रहा है। खैर इनकी आपसी लड़ाई ने एक तरह से दोनों को कमजोर और हल्का बना दिया। यह बात सीएम योगी तक पहुंची। दोनों दो वर्षों तक लड़ते रहे। इसका फायेदा अचानक राधेमोहन ने उठाया। अब दोनों को चैलेंज दे रहे हैं।

सैदपुर का साथ जीजा को जरूरी
अगर दोनों एकजुट हुए और सैदपुर परिवार ने एकमत होकर अपनी बात सियासी प्लेटफार्म पर कहना शुरू किए तो राधेमोहन को कड़ी चुनौती मिलेगी। क्योंकि सैदपुर के परिवार ने हर किसी की सियासत में मदद की। यहां तक की स्व. शंकर सिंह ने छोटे बड़े नेताओं की दिल खोलकर मदद मदद करते रहे। उसमें राधेमोहन सिंह भी शामिल हैं। मगर सियासी कारणों से यह परिवार अब दूर हो चुका है। एक जमाना था काटू सिंह और तेजू सिंह की जोड़ी पूरे जिले में हिट थी।



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